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Original Text
Suhel Khan and Saifur Nadwi
Abdullah Yusuf Ali
Abdul Majid Daryabadi
Abul Ala Maududi
Ahmed Ali
Ahmed Raza Khan
A. J. Arberry
Ali Quli Qarai
Hasan al-Fatih Qaribullah and Ahmad Darwish
Mohammad Habib Shakir
Mohammed Marmaduke William Pickthall
Muhammad Sarwar
Muhammad Taqi-ud-Din al-Hilali and Muhammad Muhsin Khan
Safi-ur-Rahman al-Mubarakpuri
Saheeh International
Talal Itani
Transliteration
Wahiduddin Khan
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
In the name of Allah, Most Gracious, Most Merciful.
34:1
ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ ٱلَّذِى لَهُۥ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَمَا فِى ٱلْأَرْضِ وَلَهُ ٱلْحَمْدُ فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ ۚ وَهُوَ ٱلْحَكِيمُ ٱلْخَبِيرُ
34:1
हर क़िस्म की तारीफ उसी खुदा के लिए (दुनिया में भी) सज़ावार है कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और आख़ेरत में (भी हर तरफ) उसी की तारीफ है और वही वाक़िफकार हकीम है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:2
يَعْلَمُ مَا يَلِجُ فِى ٱلْأَرْضِ وَمَا يَخْرُجُ مِنْهَا وَمَا يَنزِلُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ وَمَا يَعْرُجُ فِيهَا ۚ وَهُوَ ٱلرَّحِيمُ ٱلْغَفُورُ
34:2
(जो) चीज़ें (बीज वग़ैरह) ज़मीन में दाख़िल हुई है और जो चीज़ (दरख्त वग़ैरह) इसमें से निकलती है और जो चीज़ (पानी वग़ैरह) आसामन से नाज़िल होती है और जो चीज़ (नज़ारात फरिश्ते वग़ैरह) उस पर चढ़ती है (सब) को जानता है और वही बड़ा बख्शने वाला है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:3
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَا تَأْتِينَا ٱلسَّاعَةُ ۖ قُلْ بَلَىٰ وَرَبِّى لَتَأْتِيَنَّكُمْ عَـٰلِمِ ٱلْغَيْبِ ۖ لَا يَعْزُبُ عَنْهُ مِثْقَالُ ذَرَّةٍ فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَلَا فِى ٱلْأَرْضِ وَلَآ أَصْغَرُ مِن ذَٰلِكَ وَلَآ أَكْبَرُ إِلَّا فِى كِتَـٰبٍ مُّبِينٍ
34:3
और कुफ्फार कहने लगे कि हम पर तो क़यामत आएगी ही नहीं (ऐ रसूल) तुम कह दो हॉ (हॉ) मुझ को अपने उस आलेमुल ग़ैब परवरदिगार की क़सम है जिससे ज़र्रा बराबर (कोई चीज़) न आसमान में छिपी हुई है और न ज़मीन में कि क़यामत ज़रूर आएगी और ज़र्रे से छोटी चीज़ और ज़र्रे से बडी (ग़रज़ जितनी चीज़े हैं सब) वाजेए व रौशन किताब लौहे महफूज़ में महफूज़ हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:4
لِّيَجْزِىَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَعَمِلُوا۟ ٱلصَّـٰلِحَـٰتِ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُم مَّغْفِرَةٌ وَرِزْقٌ كَرِيمٌ
34:4
ताकि जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और (अच्छे) काम किए उनको खुदा जज़ाए खैर दे यही वह लोग हैं जिनके लिए (गुनाहों की) मग़फेरत और (बहुत ही) इज्ज़त की रोज़ी है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:5
وَٱلَّذِينَ سَعَوْ فِىٓ ءَايَـٰتِنَا مُعَـٰجِزِينَ أُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ مِّن رِّجْزٍ أَلِيمٌ
34:5
और जिन लोगों ने हमारी आयतों (के तोड़) में मुक़ाबिले की दौड़-धूप की उन ही के लिए दर्दनाक अज़ाब की सज़ा होगी - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:6
وَيَرَى ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْعِلْمَ ٱلَّذِىٓ أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ هُوَ ٱلْحَقَّ وَيَهْدِىٓ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلْعَزِيزِ ٱلْحَمِيدِ
34:6
और (ऐ रसूल) जिन लोगों को (हमारी बारगाह से) इल्म अता किया गया है वह जानते हैं कि जो (क़ुरान) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाज़िल हुआ है बिल्कुल ठीक है और सज़ावार हम्द (व सना) ग़ालिब (खुदा) की राह दिखाता है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:7
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ هَلْ نَدُلُّكُمْ عَلَىٰ رَجُلٍ يُنَبِّئُكُمْ إِذَا مُزِّقْتُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ إِنَّكُمْ لَفِى خَلْقٍ جَدِيدٍ
34:7
और कुफ्फ़ार (मसख़रेपन से बाहम) कहते हैं कि कहो तो हम तुम्हें ऐसा आदमी (मोहम्मद) बता दें जो तुम से बयान करेगा कि जब तुम (मर कर सड़ ग़ल जाओगे और) बिल्कुल रेज़ा रेज़ा हो जाओगे तो तुम यक़ीनन एक नए जिस्म में आओगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:8
أَفْتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ كَذِبًا أَم بِهِۦ جِنَّةٌۢ ۗ بَلِ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱلْـَٔاخِرَةِ فِى ٱلْعَذَابِ وَٱلضَّلَـٰلِ ٱلْبَعِيدِ
34:8
क्या उस शख्स (मोहम्मद) ने खुदा पर झूठ तूफान बाँधा है या उसे जुनून (हो गया) है (न मोहम्मद झूठा है न उसे जुनून है) बल्कि खुद वह लोग जो आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते अज़ाब और पहले दरजे की गुमराही में पड़े हुए हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:9
أَفَلَمْ يَرَوْا۟ إِلَىٰ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلْأَرْضِ ۚ إِن نَّشَأْ نَخْسِفْ بِهِمُ ٱلْأَرْضَ أَوْ نُسْقِطْ عَلَيْهِمْ كِسَفًا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ ۚ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَةً لِّكُلِّ عَبْدٍ مُّنِيبٍ
34:9
तो क्या उन लोगों ने आसमान और ज़मीन की तरफ भी जो उनके आगे और उनके पीछे (सब तरफ से घेरे) हैं ग़ौर नहीं किया कि अगर हम चाहे तो उन लोगों को ज़मीन में धँसा दें या उन पर आसमान का कोई टुकड़ा ही गिरा दें इसमें शक नहीं कि इसमें हर रूजू करने वाले बन्दे के लिए यक़ीनी बड़ी इबरत है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:10
۞ وَلَقَدْ ءَاتَيْنَا دَاوُۥدَ مِنَّا فَضْلًا ۖ يَـٰجِبَالُ أَوِّبِى مَعَهُۥ وَٱلطَّيْرَ ۖ وَأَلَنَّا لَهُ ٱلْحَدِيدَ
34:10
और हमने यक़ीनन दाऊद को अपनी बारगाह से बुर्जुग़ी इनायत की थी (और पहाड़ों को हुक्म दिया) कि ऐ पहाड़ों तसबीह करने में उनका साथ दो और परिन्द को (ताबेए कर दिया) और उनके वास्ते लोहे को (मोम की तरह) नरम कर दिया था - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:11
أَنِ ٱعْمَلْ سَـٰبِغَـٰتٍ وَقَدِّرْ فِى ٱلسَّرْدِ ۖ وَٱعْمَلُوا۟ صَـٰلِحًا ۖ إِنِّى بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ
34:11
कि फँराख़ व कुशादा जिरह बनाओ और (कड़ियों के) जोड़ने में अन्दाज़े का ख्याल रखो और तुम सब के सब अच्छे (अच्छे) काम करो वो कुछ तुम लोग करते हो मैं यक़ीनन देख रहा हूँ - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:12
وَلِسُلَيْمَـٰنَ ٱلرِّيحَ غُدُوُّهَا شَهْرٌ وَرَوَاحُهَا شَهْرٌ ۖ وَأَسَلْنَا لَهُۥ عَيْنَ ٱلْقِطْرِ ۖ وَمِنَ ٱلْجِنِّ مَن يَعْمَلُ بَيْنَ يَدَيْهِ بِإِذْنِ رَبِّهِۦ ۖ وَمَن يَزِغْ مِنْهُمْ عَنْ أَمْرِنَا نُذِقْهُ مِنْ عَذَابِ ٱلسَّعِيرِ
34:12
और हवा को सुलेमान का (ताबेइदार बना दिया था) कि उसकी सुबह की रफ्तार एक महीने (मुसाफ़त) की थी और इसी तरह उसकी शाम की रफ्तार एक महीने (के मुसाफत) की थी और हमने उनके लिए तांबे (को पिघलाकर) उसका चश्मा जारी कर दिया था और जिन्नात (को उनका ताबेदार कर दिया था कि उन) में कुछ लोग उनके परवरदिगार के हुक्म से उनके सामने काम काज करते थे और उनमें से जिसने हमारे हुक्म से इनहराफ़ किया है उसे हम (क़यामत में) जहन्नुम के अज़ाब का मज़ा चख़ाँएगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:13
يَعْمَلُونَ لَهُۥ مَا يَشَآءُ مِن مَّحَـٰرِيبَ وَتَمَـٰثِيلَ وَجِفَانٍ كَٱلْجَوَابِ وَقُدُورٍ رَّاسِيَـٰتٍ ۚ ٱعْمَلُوٓا۟ ءَالَ دَاوُۥدَ شُكْرًا ۚ وَقَلِيلٌ مِّنْ عِبَادِىَ ٱلشَّكُورُ
34:13
ग़रज़ सुलेमान को जो बनवाना मंज़ूर होता ये जिन्नात उनके लिए बनाते थे (जैसे) मस्जिदें, महल, क़िले और (फरिश्ते अम्बिया की) तस्वीरें और हौज़ों के बराबर प्याले और (एक जगह) गड़ी हुई (बड़ी बड़ी) देग़ें (कि एक हज़ार आदमी का खाना पक सके) ऐ दाऊद की औलाद शुक्र करते रहो और मेरे बन्दों में से शुक्र करने वाले (बन्दे) थोड़े से हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:14
فَلَمَّا قَضَيْنَا عَلَيْهِ ٱلْمَوْتَ مَا دَلَّهُمْ عَلَىٰ مَوْتِهِۦٓ إِلَّا دَآبَّةُ ٱلْأَرْضِ تَأْكُلُ مِنسَأَتَهُۥ ۖ فَلَمَّا خَرَّ تَبَيَّنَتِ ٱلْجِنُّ أَن لَّوْ كَانُوا۟ يَعْلَمُونَ ٱلْغَيْبَ مَا لَبِثُوا۟ فِى ٱلْعَذَابِ ٱلْمُهِينِ
34:14
फिर जब हमने सुलेमान पर मौत का हुक्म जारी किया तो (मर गए) मगर लकड़ी के सहारे खड़े थे और जिन्नात को किसी ने उनके मरने का पता न बताया मगर ज़मीन की दीमक ने कि वह सुलेमान के असा को खा रही थी फिर (जब खोखला होकर टूट गया और) सुलेमान (की लाश) गिरी तो जिन्नात ने जाना कि अगर वह लोग ग़ैब वॉ (ग़ैब के जानने वाले) होते तो (इस) ज़लील करने वाली (काम करने की) मुसीबत में न मुब्तिला रहते - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:15
لَقَدْ كَانَ لِسَبَإٍ فِى مَسْكَنِهِمْ ءَايَةٌ ۖ جَنَّتَانِ عَن يَمِينٍ وَشِمَالٍ ۖ كُلُوا۟ مِن رِّزْقِ رَبِّكُمْ وَٱشْكُرُوا۟ لَهُۥ ۚ بَلْدَةٌ طَيِّبَةٌ وَرَبٌّ غَفُورٌ
34:15
और (क़ौम) सबा के लिए तो यक़ीनन ख़ुद उन्हीं के घरों में (कुदरते खुदा की) एक बड़ी निशानी थी कि उनके शहर के दोनों तरफ दाहिने बाएं (हरे-भरे) बाग़ात थे (और उनको हुक्म था) कि अपने परवरदिगार की दी हुई रोज़ी Âाओ (पियो) और उसका शुक्र अदा करो (दुनिया में) ऐसा पाकीज़ा शहर और (आख़ेरत में) परवरदिगार सा बख्शने वाला - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:16
فَأَعْرَضُوا۟ فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ سَيْلَ ٱلْعَرِمِ وَبَدَّلْنَـٰهُم بِجَنَّتَيْهِمْ جَنَّتَيْنِ ذَوَاتَىْ أُكُلٍ خَمْطٍ وَأَثْلٍ وَشَىْءٍ مِّن سِدْرٍ قَلِيلٍ
34:16
इस पर भी उन लोगों ने मुँह फेर लिया (और पैग़म्बरों का कहा न माना) तो हमने (एक ही बन्द तोड़कर) उन पर बड़े ज़ोरों का सैलाब भेज दिया और (उनको तबाह करके) उनके दोनों बाग़ों के बदले ऐसे दो बाग़ दिए जिनके फल बदमज़ा थे और उनमें झाऊ था और कुछ थोड़ी सी बेरियाँ थी - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:17
ذَٰلِكَ جَزَيْنَـٰهُم بِمَا كَفَرُوا۟ ۖ وَهَلْ نُجَـٰزِىٓ إِلَّا ٱلْكَفُورَ
34:17
ये हमने उनकी नाशुक्री की सज़ा दी और हम तो बड़े नाशुक्रों ही की सज़ा किया करते हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:18
وَجَعَلْنَا بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ ٱلْقُرَى ٱلَّتِى بَـٰرَكْنَا فِيهَا قُرًى ظَـٰهِرَةً وَقَدَّرْنَا فِيهَا ٱلسَّيْرَ ۖ سِيرُوا۟ فِيهَا لَيَالِىَ وَأَيَّامًا ءَامِنِينَ
34:18
और हम अहले सबा और (शाम) की उन बस्तियों के दरमियान जिनमें हमने बरकत अता की थी और चन्द बस्तियाँ (सरे राह) आबाद की थी जो बाहम नुमाया थीं और हमने उनमें आमद व रफ्त की राह मुक़र्रर की थी कि उनमें रातों को दिनों को (जब जी चाहे) बेखटके चलो फिरो - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:19
فَقَالُوا۟ رَبَّنَا بَـٰعِدْ بَيْنَ أَسْفَارِنَا وَظَلَمُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ فَجَعَلْنَـٰهُمْ أَحَادِيثَ وَمَزَّقْنَـٰهُمْ كُلَّ مُمَزَّقٍ ۚ إِنَّ فِى ذَٰلِكَ لَـَٔايَـٰتٍ لِّكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ
34:19
तो वह लोग ख़ुद कहने लगे परवरदिगार (क़रीब के सफर में लुत्फ नहीं) तो हमारे सफ़रों में दूरी पैदा कर दे और उन लोगों ने खुद अपने ऊपर ज़ुल्म किया तो हमने भी उनको (तबाह करके उनके) अफसाने बना दिए - और उनकी धज्जियाँ उड़ा के उनको तितिर बितिर कर दिया बेशक उनमें हर सब्र व शुक्र करने वालोंके वास्ते बड़ी इबरते हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:20
وَلَقَدْ صَدَّقَ عَلَيْهِمْ إِبْلِيسُ ظَنَّهُۥ فَٱتَّبَعُوهُ إِلَّا فَرِيقًا مِّنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
34:20
और शैतान ने अपने ख्याल को (जो उनके बारे में किया था) सच कर दिखाया तो उन लोगों ने उसकी पैरवी की मगर ईमानवालों का एक गिरोह (न भटका) - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:21
وَمَا كَانَ لَهُۥ عَلَيْهِم مِّن سُلْطَـٰنٍ إِلَّا لِنَعْلَمَ مَن يُؤْمِنُ بِٱلْـَٔاخِرَةِ مِمَّنْ هُوَ مِنْهَا فِى شَكٍّ ۗ وَرَبُّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ حَفِيظٌ
34:21
और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) कि हम उन लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे में शक में (पड़े) हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हर चीज़ का निगरॉ है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:22
قُلِ ٱدْعُوا۟ ٱلَّذِينَ زَعَمْتُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ ۖ لَا يَمْلِكُونَ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَلَا فِى ٱلْأَرْضِ وَمَا لَهُمْ فِيهِمَا مِن شِرْكٍ وَمَا لَهُۥ مِنْهُم مِّن ظَهِيرٍ
34:22
(ऐ रसूल इनसे) कह दो कि जिन लोगों को तुम खुद ख़ुदा के सिवा (माबूद) समझते हो पुकारो (तो मालूम हो जाएगा कि) वह लोग ज़र्रा बराबर न आसमानों में कुछ इख़तेयार रखते हैं और न ज़मीन में और न उनकी उन दोनों में शिरकत है और न उनमें से कोई खुदा का (किसी चीज़ में) मद्दगार है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:23
وَلَا تَنفَعُ ٱلشَّفَـٰعَةُ عِندَهُۥٓ إِلَّا لِمَنْ أَذِنَ لَهُۥ ۚ حَتَّىٰٓ إِذَا فُزِّعَ عَن قُلُوبِهِمْ قَالُوا۟ مَاذَا قَالَ رَبُّكُمْ ۖ قَالُوا۟ ٱلْحَقَّ ۖ وَهُوَ ٱلْعَلِىُّ ٱلْكَبِيرُ
34:23
जिसके लिए वह खुद इजाज़त अता फ़रमाए उसके सिवा कोई सिफारिश उसकी बारगाह में काम न आएगी (उसके दरबार की हैबत) यहाँ तक (है) कि जब (शिफ़ाअत का) हुक्म होता है तो शिफ़ाअत करने वाले बेहोश हो जाते हैं फिर तब उनके दिलों की घबराहट दूर कर दी जाती है तो पूछते हैं कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या हुक्म दिया - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:24
۞ قُلْ مَن يَرْزُقُكُم مِّنَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ قُلِ ٱللَّهُ ۖ وَإِنَّآ أَوْ إِيَّاكُمْ لَعَلَىٰ هُدًى أَوْ فِى ضَلَـٰلٍ مُّبِينٍ
34:24
तो मुक़र्रिब फरिश्ते कहते हैं कि जो वाजिबी था (ऐ रसूल) तुम (इनसे) पूछो तो कि भला तुमको सारे आसमान और ज़मीन से कौन रोज़ी देता है (वह क्या कहेंगे) तुम खुद कह दो कि खुदा और मैं या तुम (दोनों में से एक तो) ज़रूर राहे रास्त पर है (और दूसरा गुमराह) या वह सरीही गुमराही में पड़ा है (और दूसरा राहे रास्त पर) - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:25
قُل لَّا تُسْـَٔلُونَ عَمَّآ أَجْرَمْنَا وَلَا نُسْـَٔلُ عَمَّا تَعْمَلُونَ
34:25
(ऐ रसूल) तुम (उनसे) कह दो न हमारे गुनाहों की तुमसे पूछ गछ होगी और न तुम्हारी कारस्तानियों की हम से बाज़ पुर्स - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:26
قُلْ يَجْمَعُ بَيْنَنَا رَبُّنَا ثُمَّ يَفْتَحُ بَيْنَنَا بِٱلْحَقِّ وَهُوَ ٱلْفَتَّاحُ ٱلْعَلِيمُ
34:26
(ऐ रसूल) तुम (उनसे) कह दो कि हमारा परवरदिगार (क़यामत में) हम सबको इकट्ठा करेगा फिर हमारे दरमियान (ठीक) फैसला कर देगा और वह तो ठीक-ठीक फैसला करने वाला वाक़िफकार है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:27
قُلْ أَرُونِىَ ٱلَّذِينَ أَلْحَقْتُم بِهِۦ شُرَكَآءَ ۖ كَلَّا ۚ بَلْ هُوَ ٱللَّهُ ٱلْعَزِيزُ ٱلْحَكِيمُ
34:27
(ऐ रसूल तुम कह दो कि जिनको तुम ने खुदा का शरीक बनाकर) खुदा के साथ मिलाया है ज़रा उन्हें मुझे भी तो दिखा दो हरगिज़ (कोई शरीक नहीं) बल्कि खुदा ग़ालिब हिकमत वाला है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:28
وَمَآ أَرْسَلْنَـٰكَ إِلَّا كَآفَّةً لِّلنَّاسِ بَشِيرًا وَنَذِيرًا وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
34:28
(ऐ रसूल) हमने तुमको तमाम (दुनिया के) लोगों के लिए (नेकों को बेहश्त की) खुशखबरी देने वाला और (बन्दों को अज़ाब से) डराने वाला (पैग़म्बर) बनाकर भेजा मगर बहुतेरे लोग (इतना भी) नहीं जानते - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:29
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَـٰذَا ٱلْوَعْدُ إِن كُنتُمْ صَـٰدِقِينَ
34:29
और (उलटे) कहते हैं कि अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो (आख़िर) ये क़यामत का वायदा कब पूरा होगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:30
قُل لَّكُم مِّيعَادُ يَوْمٍ لَّا تَسْتَـْٔخِرُونَ عَنْهُ سَاعَةً وَلَا تَسْتَقْدِمُونَ
34:30
(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि तुम लोगों के वास्ते एक ख़ास दिन की मीयाद मुक़र्रर है कि न तुम उससे एक घड़ी पीछे रह सकते हो और न आगे ही बड़ सकते हो - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:31
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لَن نُّؤْمِنَ بِهَـٰذَا ٱلْقُرْءَانِ وَلَا بِٱلَّذِى بَيْنَ يَدَيْهِ ۗ وَلَوْ تَرَىٰٓ إِذِ ٱلظَّـٰلِمُونَ مَوْقُوفُونَ عِندَ رَبِّهِمْ يَرْجِعُ بَعْضُهُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ ٱلْقَوْلَ يَقُولُ ٱلَّذِينَ ٱسْتُضْعِفُوا۟ لِلَّذِينَ ٱسْتَكْبَرُوا۟ لَوْلَآ أَنتُمْ لَكُنَّا مُؤْمِنِينَ
34:31
और जो लोग काफिर हों बैठे कहते हैं कि हम तो न इस क़ुरान पर हरगिज़ ईमान लाएँगे और न उस (किताब) पर जो इससे पहले नाज़िल हो चुकी और (ऐ रसूल तुमको बहुत ताज्जुब हो) अगर तुम देखो कि जब ये ज़ालिम क़यामत के दिन अपने परवरदिगार के सामने खड़े किए जायेंगे (और) उनमें का एक दूसरे की तरफ (अपनी) बात को फेरता होगा कि कमज़ोर अदना (दरजे के) लोग बड़े (सरकश) लोगों से कहते होगें कि अगर तुम (हमें) न (बहकाए) होते तो हम ज़रूर ईमानवाले होते (इस मुसीबत में न पड़ते) - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:32
قَالَ ٱلَّذِينَ ٱسْتَكْبَرُوا۟ لِلَّذِينَ ٱسْتُضْعِفُوٓا۟ أَنَحْنُ صَدَدْنَـٰكُمْ عَنِ ٱلْهُدَىٰ بَعْدَ إِذْ جَآءَكُم ۖ بَلْ كُنتُم مُّجْرِمِينَ
34:32
तो सरकश लोग कमज़ोरों से (मुख़ातिब होकर) कहेंगे कि जब तुम्हारे पास (खुदा की तरफ़ से) हिदायत आयी तो थी तो क्या उसके आने के बाद हमने तुमको (ज़बरदस्ती अम्ल करने से) रोका था (हरगिज़ नहीं) बल्कि तुम तो खुद मुजरिम थे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:33
وَقَالَ ٱلَّذِينَ ٱسْتُضْعِفُوا۟ لِلَّذِينَ ٱسْتَكْبَرُوا۟ بَلْ مَكْرُ ٱلَّيْلِ وَٱلنَّهَارِ إِذْ تَأْمُرُونَنَآ أَن نَّكْفُرَ بِٱللَّهِ وَنَجْعَلَ لَهُۥٓ أَندَادًا ۚ وَأَسَرُّوا۟ ٱلنَّدَامَةَ لَمَّا رَأَوُا۟ ٱلْعَذَابَ وَجَعَلْنَا ٱلْأَغْلَـٰلَ فِىٓ أَعْنَاقِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ۚ هَلْ يُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
34:33
और कमज़ोर लोग बड़े लोगों से कहेंगे (कि ज़बरदस्ती तो नहीं की मगर हम खुद भी गुमराह नहीं हुए) बल्कि (तुम्हारी) रात-दिन की फरेबदेही ने (गुमराह किया कि) तुम लोग हमको खुदा न मानने और उसका शरीक ठहराने का बराबर हुक्म देते रहे (तो हम क्या करते) और जब ये लोग अज़ाब को (अपनी ऑंखों से) देख लेंगे तो दिल ही दिल में पछताएँगे और जो लोग काफिर हो बैठे हम उनकी गर्दनों में तौक़ डाल देंगे जो कारस्तानियां ये लोग (दुनिया में) करते थे उसी के मुवाफिक़ तो सज़ा दी जाएगी - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:34
وَمَآ أَرْسَلْنَا فِى قَرْيَةٍ مِّن نَّذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتْرَفُوهَآ إِنَّا بِمَآ أُرْسِلْتُم بِهِۦ كَـٰفِرُونَ
34:34
और हमने किसी बस्ती में कोई डराने वाला पैग़म्बर नहीं भेजा मगर वहाँ के लोग ये ज़रूर बोल उठेंगे कि जो एहकाम देकर तुम भेजे गए हो हम उनको नहीं मानते - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:35
وَقَالُوا۟ نَحْنُ أَكْثَرُ أَمْوَٰلًا وَأَوْلَـٰدًا وَمَا نَحْنُ بِمُعَذَّبِينَ
34:35
और ये भी कहने लगे कि हम तो (ईमानदारों से) माल और औलाद में कहीं ज्यादा है और हम पर आख़ेरत में (अज़ाब) भी नहीं किया जाएगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:36
قُلْ إِنَّ رَبِّى يَبْسُطُ ٱلرِّزْقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقْدِرُ وَلَـٰكِنَّ أَكْثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ
34:36
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसके लिऐ चाहता है) तंग करता है मगर बहुतेरे लोग नहीं जानते हैं - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:37
وَمَآ أَمْوَٰلُكُمْ وَلَآ أَوْلَـٰدُكُم بِٱلَّتِى تُقَرِّبُكُمْ عِندَنَا زُلْفَىٰٓ إِلَّا مَنْ ءَامَنَ وَعَمِلَ صَـٰلِحًا فَأُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمْ جَزَآءُ ٱلضِّعْفِ بِمَا عَمِلُوا۟ وَهُمْ فِى ٱلْغُرُفَـٰتِ ءَامِنُونَ
34:37
और (याद रखो) तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद की ये हस्ती नहीं कि तुम को हमारी बारगाह में मुक़र्रिब बना दें मगर (हाँ) जिसने ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए उन लोगों के लिए तो उनकी कारगुज़ारियों की दोहरी जज़ा है और वह लोग (बेहश्त के) झरोखों में इत्मेनान से रहेंगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:38
وَٱلَّذِينَ يَسْعَوْنَ فِىٓ ءَايَـٰتِنَا مُعَـٰجِزِينَ أُو۟لَـٰٓئِكَ فِى ٱلْعَذَابِ مُحْضَرُونَ
34:38
और जो लोग हमारी आयतों (की तोड़) में मुक़ाबले की नीयत से दौड़ द्दूप करते हैं वही लोग (जहन्नुम के) अज़ाब में झोक दिए जाएॅगे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:39
قُلْ إِنَّ رَبِّى يَبْسُطُ ٱلرِّزْقَ لِمَن يَشَآءُ مِنْ عِبَادِهِۦ وَيَقْدِرُ لَهُۥ ۚ وَمَآ أَنفَقْتُم مِّن شَىْءٍ فَهُوَ يُخْلِفُهُۥ ۖ وَهُوَ خَيْرُ ٱلرَّٰزِقِينَ
34:39
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसके लिए चाहता है) तंग कर देता है और जो कुछ भी तुम लोग (उसकी राह में) ख़र्च करते हो वह उसका ऐवज देगा और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देनेवाला है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:40
وَيَوْمَ يَحْشُرُهُمْ جَمِيعًا ثُمَّ يَقُولُ لِلْمَلَـٰٓئِكَةِ أَهَـٰٓؤُلَآءِ إِيَّاكُمْ كَانُوا۟ يَعْبُدُونَ
34:40
और (वह दिन याद करो) जिस दिन सब लोगों को इकट्ठा करेगा फिर फरिश्तों से पूछेगा कि क्या ये लोग तुम्हारी परसतिश करते थे फरिश्ते अर्ज़ करेंगे (बारे इलाहा) तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:41
قَالُوا۟ سُبْحَـٰنَكَ أَنتَ وَلِيُّنَا مِن دُونِهِم ۖ بَلْ كَانُوا۟ يَعْبُدُونَ ٱلْجِنَّ ۖ أَكْثَرُهُم بِهِم مُّؤْمِنُونَ
34:41
तू ही हमारा मालिक है न ये लोग (ये लोग हमारी नहीं) बल्कि जिन्नात (खबाएस भूत-परेत) की परसतिश करते थे कि उनमें के अक्सर लोग उन्हीं पर ईमान रखते थे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:42
فَٱلْيَوْمَ لَا يَمْلِكُ بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ نَّفْعًا وَلَا ضَرًّا وَنَقُولُ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا۟ ذُوقُوا۟ عَذَابَ ٱلنَّارِ ٱلَّتِى كُنتُم بِهَا تُكَذِّبُونَ
34:42
तब (खुदा फरमाएगा) आज तो तुममें से कोई न दूसरे के फायदे ही पहुँचाने का इख्तेयार रखता है और न ज़रर का और हम सरकशों से कहेंगे कि (आज) उस अज़ाब के मज़े चखो जिसे तुम (दुनिया में) झुठलाया करते थे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:43
وَإِذَا تُتْلَىٰ عَلَيْهِمْ ءَايَـٰتُنَا بَيِّنَـٰتٍ قَالُوا۟ مَا هَـٰذَآ إِلَّا رَجُلٌ يُرِيدُ أَن يَصُدَّكُمْ عَمَّا كَانَ يَعْبُدُ ءَابَآؤُكُمْ وَقَالُوا۟ مَا هَـٰذَآ إِلَّآ إِفْكٌ مُّفْتَرًى ۚ وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ لِلْحَقِّ لَمَّا جَآءَهُمْ إِنْ هَـٰذَآ إِلَّا سِحْرٌ مُّبِينٌ
34:43
और जब उनके सामने हमारी वाज़ेए व रौशन आयतें पढ़ी जाती थीं तो बाहम कहते थे कि ये (रसूल) भी तो बस (हमारा ही जैसा) आदमी है ये चाहता है कि जिन चीज़ों को तुम्हारे बाप-दादा पूजते थे (उनकी परसतिश) से तुम को रोक दें और कहने लगे कि ये (क़ुरान) तो बस निरा झूठ है और अपने जी का गढ़ा हुआ है और जो लोग काफ़िर हो बैठो जब उनके पास हक़ बात आयी तो उसके बारे में कहने लगे कि ये तो बस खुला हुआ जादू है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:44
وَمَآ ءَاتَيْنَـٰهُم مِّن كُتُبٍ يَدْرُسُونَهَا ۖ وَمَآ أَرْسَلْنَآ إِلَيْهِمْ قَبْلَكَ مِن نَّذِيرٍ
34:44
और (ऐ रसूल) हमने तो उन लोगों को न (आसमानी) किताबें अता की तुम्हें जिन्हें ये लोग पढ़ते और न तुमसे पहले इन लोगों के पास कोई डरानेवाला (पैग़म्बर) भेजा (उस पर भी उन्होंने क़द्र न की) - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:45
وَكَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ وَمَا بَلَغُوا۟ مِعْشَارَ مَآ ءَاتَيْنَـٰهُمْ فَكَذَّبُوا۟ رُسُلِى ۖ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ
34:45
और जो लोग उनसे पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया था हालॉकि हमने जितना उन लोगों को दिया था ये लोग (अभी) उसके दसवें हिस्सा को (भी) नहीं पहुँचे उस पर उन लोगों न मेरे (पैग़म्बरों को) झुठलाया था तो तुमने देखा कि मेरा (अज़ाब उन पर) कैसा सख्त हुआ - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:46
۞ قُلْ إِنَّمَآ أَعِظُكُم بِوَٰحِدَةٍ ۖ أَن تَقُومُوا۟ لِلَّهِ مَثْنَىٰ وَفُرَٰدَىٰ ثُمَّ تَتَفَكَّرُوا۟ ۚ مَا بِصَاحِبِكُم مِّن جِنَّةٍ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا نَذِيرٌ لَّكُم بَيْنَ يَدَىْ عَذَابٍ شَدِيدٍ
34:46
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तुमसे नसीहत की बस एक बात कहता हूँ (वह) ये (है) कि तुम लोग बाज़ खुदा के वास्ते एक-एक और दो-दो उठ खड़े हो और अच्छी तरह ग़ौर करो तो (देख लोगे कि) तुम्हारे रफीक़ (मोहम्मद स0) को किसी तरह का जुनून नहीं वह तो बस तुम्हें एक सख्त अज़ाब (क़यामत) के सामने (आने) से डराने वाला है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:47
قُلْ مَا سَأَلْتُكُم مِّنْ أَجْرٍ فَهُوَ لَكُمْ ۖ إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِ ۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ شَهِيدٌ
34:47
(ऐ रसूल) तुम (ये भी) कह दो कि (तबलीख़े रिसालत की) मैंने तुमसे कुछ उजरत माँगी हो तो वह तुम्हीं को (मुबारक) हो मेरी उजरत तो बस खुदा पर है और वही (तुम्हारे आमाल अफआल) हर चीज़ से खूब वाक़िफ है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:48
قُلْ إِنَّ رَبِّى يَقْذِفُ بِٱلْحَقِّ عَلَّـٰمُ ٱلْغُيُوبِ
34:48
(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि मेरा बड़ा गैबवाँ परवरदिगार (मेरे दिल में) दीन हक़ को बराबर ऊपर से उतारता है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:49
قُلْ جَآءَ ٱلْحَقُّ وَمَا يُبْدِئُ ٱلْبَـٰطِلُ وَمَا يُعِيدُ
34:49
(अब उनसे) कह दो दीने हक़ आ गया और इतना तो भी (समझो की) बातिल (माबूद) शुरू-शुरू कुछ पैदा करता है न (मरने के बाद) दोबारा ज़िन्दा कर सकता है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:50
قُلْ إِن ضَلَلْتُ فَإِنَّمَآ أَضِلُّ عَلَىٰ نَفْسِى ۖ وَإِنِ ٱهْتَدَيْتُ فَبِمَا يُوحِىٓ إِلَىَّ رَبِّىٓ ۚ إِنَّهُۥ سَمِيعٌ قَرِيبٌ
34:50
(ऐ रसूल) तुम ये भी कह दो कि अगर मैं गुमराह हो गया हूँ तो अपनी ही जान पर मेरी गुमराही (का वबाल) है और अगर मैं राहे रास्त पर हूँ तो इस ''वही'' के तुफ़ैल से जो मेरा परवरदिगार मेरी तरफ़ भेजता है बेशक वह सुनने वाला (और बहुत) क़रीब है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:51
وَلَوْ تَرَىٰٓ إِذْ فَزِعُوا۟ فَلَا فَوْتَ وَأُخِذُوا۟ مِن مَّكَانٍ قَرِيبٍ
34:51
और (ऐ रसूल) काश तुम देखते (तो सख्त ताज्जुब करते) जब ये कुफ्फार (मैदाने हशर में) घबराए-घबराए फिरते होंगे तो भी छुटकारा न होगा - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:52
وَقَالُوٓا۟ ءَامَنَّا بِهِۦ وَأَنَّىٰ لَهُمُ ٱلتَّنَاوُشُ مِن مَّكَانٍۭ بَعِيدٍ
34:52
और आस ही पास से (बाआसानी) गिरफ्तार कर लिए जाएँगे और (उस वक्त बेबसी में) कहेंगे कि अब हम रसूलों पर ईमान लाए और इतनी दूर दराज़ जगह से (ईमान पर) उनका दसतरस (पहुँचना) कहाँ मुमकिन है - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:53
وَقَدْ كَفَرُوا۟ بِهِۦ مِن قَبْلُ ۖ وَيَقْذِفُونَ بِٱلْغَيْبِ مِن مَّكَانٍۭ بَعِيدٍ
34:53
हालॉकि ये लोग उससे पहले ही जब उनका दसतरस था इन्कार कर चुके और (दुनिया में तमाम उम्र) बे देखे भाले (अटकल के) तके बड़ी-बड़ी दूर से चलाते रहे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)
34:54
وَحِيلَ بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ مَا يَشْتَهُونَ كَمَا فُعِلَ بِأَشْيَاعِهِم مِّن قَبْلُ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا۟ فِى شَكٍّ مُّرِيبٍۭ
34:54
और अब तो उनके और उनकी तमन्नाओं के दरमियान (उसी तरह) पर्दा डाल दिया गया है जिस तरह उनसे पहले उनके हमरंग लोगों के साथ (यही बरताव) किया जा चुका इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बेचैन करने वाले शक में पड़े हुए थे - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)