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Original Text
Farooq Khan and Ahmed
Abdullah Yusuf Ali
Abdul Majid Daryabadi
Abul Ala Maududi
Ahmed Ali
Ahmed Raza Khan
A. J. Arberry
Ali Quli Qarai
Hasan al-Fatih Qaribullah and Ahmad Darwish
Mohammad Habib Shakir
Mohammed Marmaduke William Pickthall
Muhammad Sarwar
Muhammad Taqi-ud-Din al-Hilali and Muhammad Muhsin Khan
Safi-ur-Rahman al-Mubarakpuri
Saheeh International
Talal Itani
Transliteration
Wahiduddin Khan
9:1
بَرَآءَةٌ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦٓ إِلَى ٱلَّذِينَ عَـٰهَدتُّم مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ
9:1
मुशरिकों (बहुदेववादियों) से जिनसे तुमने संधि की थी, विरक्ति (की उद्घॊषणा) है अल्लाह और उसके रसूल की ओर से - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:2
فَسِيحُوا۟ فِى ٱلْأَرْضِ أَرْبَعَةَ أَشْهُرٍ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِى ٱللَّهِ ۙ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُخْزِى ٱلْكَـٰفِرِينَ
9:2
"अतः इस धरती में चार महीने और चल-फिर लो और यह बात जान लो कि अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते और यह कि अल्लाह इनकार करनेवालों को अपमानित करता है।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:3
وَأَذَٰنٌ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦٓ إِلَى ٱلنَّاسِ يَوْمَ ٱلْحَجِّ ٱلْأَكْبَرِ أَنَّ ٱللَّهَ بَرِىٓءٌ مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ۙ وَرَسُولُهُۥ ۚ فَإِن تُبْتُمْ فَهُوَ خَيْرٌ لَّكُمْ ۖ وَإِن تَوَلَّيْتُمْ فَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّكُمْ غَيْرُ مُعْجِزِى ٱللَّهِ ۗ وَبَشِّرِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
9:3
सार्वजनिक उद्घॊषणा है अल्लाह और उसके रसूल की ओर से, बड़े हज के दिन लोगों के लिए, कि "अल्लाह मुशरिकों के प्रति जिम्मेदार से बरी है और उसका रसूल भी। अब यदि तुम तौबा कर लो, तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है, किन्तु यदि तुम मुह मोड़ते हो, तो जान लो कि तुम अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते।" और इनकार करनेवालों के लिए एक दुखद यातना की शुभ-सूचना दे दो - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:4
إِلَّا ٱلَّذِينَ عَـٰهَدتُّم مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ثُمَّ لَمْ يَنقُصُوكُمْ شَيْـًٔا وَلَمْ يُظَـٰهِرُوا۟ عَلَيْكُمْ أَحَدًا فَأَتِمُّوٓا۟ إِلَيْهِمْ عَهْدَهُمْ إِلَىٰ مُدَّتِهِمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُتَّقِينَ
9:4
सिवाय उन मुशरिकों के जिनसे तुमने संधि-समझौते किए, फिर उन्होंने तुम्हारे साथ अपने वचन को पूर्ण करने में कोई कमी नही की और न तुम्हारे विरुद्ध किसी की सहायता ही की, तो उनके साथ उनकी संधि को उन लोगों के निर्धारित समय तक पूरा करो। निश्चय ही अल्लाह को डर रखनेवाले प्रिय है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:5
فَإِذَا ٱنسَلَخَ ٱلْأَشْهُرُ ٱلْحُرُمُ فَٱقْتُلُوا۟ ٱلْمُشْرِكِينَ حَيْثُ وَجَدتُّمُوهُمْ وَخُذُوهُمْ وَٱحْصُرُوهُمْ وَٱقْعُدُوا۟ لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍ ۚ فَإِن تَابُوا۟ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُا۟ ٱلزَّكَوٰةَ فَخَلُّوا۟ سَبِيلَهُمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
9:5
फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:6
وَإِنْ أَحَدٌ مِّنَ ٱلْمُشْرِكِينَ ٱسْتَجَارَكَ فَأَجِرْهُ حَتَّىٰ يَسْمَعَ كَلَـٰمَ ٱللَّهِ ثُمَّ أَبْلِغْهُ مَأْمَنَهُۥ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَعْلَمُونَ
9:6
और यदि मुशरिकों में से कोई तुमसे शरण माँगे, तो तुम उसे शरण दे दो, यहाँ तक कि वह अल्लाह की वाणी सुन ले। फिर उसे उसके सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दो, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं, जिन्हें ज्ञान नहीं - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:7
كَيْفَ يَكُونُ لِلْمُشْرِكِينَ عَهْدٌ عِندَ ٱللَّهِ وَعِندَ رَسُولِهِۦٓ إِلَّا ٱلَّذِينَ عَـٰهَدتُّمْ عِندَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ ۖ فَمَا ٱسْتَقَـٰمُوا۟ لَكُمْ فَٱسْتَقِيمُوا۟ لَهُمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلْمُتَّقِينَ
9:7
इन मुशरिकों को किसी संधि की कोई ज़िम्मेदारी अल्लाह और उसके रसूल पर कैसे बाक़ी रह सकती है? - उन लोगों का मामला इससे अलग है, जिनसे तुमने मस्जिदे हराम (काबा) के पास संधि की थी, तो जब तक वे तुम्हारे साथ सीधे रहें, तब तक तुम भी उनके साथ सीधे रहो। निश्चय ही अल्लाह को डर रखनेवाले प्रिय है। - - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:8
كَيْفَ وَإِن يَظْهَرُوا۟ عَلَيْكُمْ لَا يَرْقُبُوا۟ فِيكُمْ إِلًّا وَلَا ذِمَّةً ۚ يُرْضُونَكُم بِأَفْوَٰهِهِمْ وَتَأْبَىٰ قُلُوبُهُمْ وَأَكْثَرُهُمْ فَـٰسِقُونَ
9:8
कैसे बाक़ी रह सकती है? जबकि उनका हाल यह है कि यदि वे तुम्हें दबा पाएँ तो वे न तुम्हारे विषय में किसी नाते-रिश्ते का ख़याल रखें औऱ न किसी अभिवचन का। वे अपने मुँह ही से तुम्हें राज़ी करते है, किन्तु उनके दिल इनकार करते रहते है और उनमें अधिकतर अवज्ञाकारी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:9
ٱشْتَرَوْا۟ بِـَٔايَـٰتِ ٱللَّهِ ثَمَنًا قَلِيلًا فَصَدُّوا۟ عَن سَبِيلِهِۦٓ ۚ إِنَّهُمْ سَآءَ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
9:9
उन्होंने अल्लाह की आयतों के बदले थोड़ा-सा मूल्य स्वीकार किया और इस प्रकार वे उसका मार्ग अपनाने से रूक गए। निश्चय ही बहुत बुरा है, जो कुछ वे कर रहे हैं - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:10
لَا يَرْقُبُونَ فِى مُؤْمِنٍ إِلًّا وَلَا ذِمَّةً ۚ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُعْتَدُونَ
9:10
किसी मोमिन के बारे में न तो नाते-रिश्ते का ख़याल रखते है और न किसी अभिवचन का। वही लोग है जिन्होंने सीमा का उल्लंघन किया - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:11
فَإِن تَابُوا۟ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُا۟ ٱلزَّكَوٰةَ فَإِخْوَٰنُكُمْ فِى ٱلدِّينِ ۗ وَنُفَصِّلُ ٱلْـَٔايَـٰتِ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
9:11
अतः यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो वे धर्म के भाई हैं। और हम उन लोगों के लिए आयतें खोल-खोलकर बयान करते हैं, जो जानना चाहें - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:12
وَإِن نَّكَثُوٓا۟ أَيْمَـٰنَهُم مِّنۢ بَعْدِ عَهْدِهِمْ وَطَعَنُوا۟ فِى دِينِكُمْ فَقَـٰتِلُوٓا۟ أَئِمَّةَ ٱلْكُفْرِ ۙ إِنَّهُمْ لَآ أَيْمَـٰنَ لَهُمْ لَعَلَّهُمْ يَنتَهُونَ
9:12
और यदि अपने अभिवचन के पश्चात वे अपनी क़समॊं कॊ तॊड़ डालॆं और तुम्हारॆ दीन (धर्म) पर चॊटें करनॆ लगॆं, तॊ फिर कुफ़्र (अधर्म) कॆ सरदारों सॆ युद्ध करॊ, उनकी क़समॆं कुछ नहीं, ताकि वॆ बाज़ आ जाऐं। - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:13
أَلَا تُقَـٰتِلُونَ قَوْمًا نَّكَثُوٓا۟ أَيْمَـٰنَهُمْ وَهَمُّوا۟ بِإِخْرَاجِ ٱلرَّسُولِ وَهُم بَدَءُوكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ ۚ أَتَخْشَوْنَهُمْ ۚ فَٱللَّهُ أَحَقُّ أَن تَخْشَوْهُ إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ
9:13
क्या तुम ऐसॆ लॊगॊं सॆ नहीं लड़ॊगॆ जिन्हॊंनॆ अपनी क़समों को तोड़ डालीं और रसूल को निकाल देना चाहा और वही हैं जिन्होंने तुमसे छेड़ में पहल की? क्या तुम उनसे डरते हो? यदि तुम मोमिन हो तो इसका ज़्यादा हक़दार अल्लाह है कि तुम उससे डरो - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:14
قَـٰتِلُوهُمْ يُعَذِّبْهُمُ ٱللَّهُ بِأَيْدِيكُمْ وَيُخْزِهِمْ وَيَنصُرْكُمْ عَلَيْهِمْ وَيَشْفِ صُدُورَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِينَ
9:14
उनसे लड़ो। अल्लाह तुम्हारे हाथों से उन्हें यातना देगा और उन्हें अपमानित करेगा और उनके मुक़ाबले में वह तुम्हारी सहायता करेगा। और ईमानवाले लोगों के दिलों का दुखमोचन करेगा; - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:15
وَيُذْهِبْ غَيْظَ قُلُوبِهِمْ ۗ وَيَتُوبُ ٱللَّهُ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
9:15
उनके दिलों का क्रोध मिटाएगा, अल्लाह जिसे चाहेगा, उसपर दया-दृष्टि डालेगा। अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:16
أَمْ حَسِبْتُمْ أَن تُتْرَكُوا۟ وَلَمَّا يَعْلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ جَـٰهَدُوا۟ مِنكُمْ وَلَمْ يَتَّخِذُوا۟ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَا رَسُولِهِۦ وَلَا ٱلْمُؤْمِنِينَ وَلِيجَةً ۚ وَٱللَّهُ خَبِيرٌۢ بِمَا تَعْمَلُونَ
9:16
क्या तुमने यह समझ रखा है कि तुम ऐसे ही छोड़ दिए जाओगे, हालाँकि अल्लाह ने अभी उन लोगों को छाँटा ही नहीं, जिन्होंने तुममें से जिहाद किया और अल्लाह और उसके रसूल और मोमिनों को छोड़कर किसी को घनिष्ठ मित्र नहीं बनाया? तुम जो कुछ भी करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:17
مَا كَانَ لِلْمُشْرِكِينَ أَن يَعْمُرُوا۟ مَسَـٰجِدَ ٱللَّهِ شَـٰهِدِينَ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِم بِٱلْكُفْرِ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَـٰلُهُمْ وَفِى ٱلنَّارِ هُمْ خَـٰلِدُونَ
9:17
यह मुशरिकों का काम नहीं कि वे अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करें और उसके प्रबंधक हों, जबकि वे स्वयं अपने विरुद्ध कुफ़्र की गवाही दे रहे है। उन लोगों का सारा किया-धरा अकारथ गया और वे आग में सदैव रहेंगे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:18
إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَـٰجِدَ ٱللَّهِ مَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَلَمْ يَخْشَ إِلَّا ٱللَّهَ ۖ فَعَسَىٰٓ أُو۟لَـٰٓئِكَ أَن يَكُونُوا۟ مِنَ ٱلْمُهْتَدِينَ
9:18
अल्लाह की मस्जिदों का प्रबंधक और उसे आबाद करनेवाला वही हो सकता है जो अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान लाया, नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी और अल्लाह के सिवा किसी से न डरा। अतः ऐसे ही लोग, आशा है कि सीधा मार्ग पानेवाले होंगे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:19
۞ أَجَعَلْتُمْ سِقَايَةَ ٱلْحَآجِّ وَعِمَارَةَ ٱلْمَسْجِدِ ٱلْحَرَامِ كَمَنْ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَجَـٰهَدَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ۚ لَا يَسْتَوُۥنَ عِندَ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
9:19
क्या तुमने हाजियों को पानी पिलाने और मस्जिदे हराम (काबा) के प्रबंध को उस क्यक्ति के काम के बराबर ठहरा लिया है, जो अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान लाया और उसने अल्लाह के मार्ग में संघर्ष किया?अल्लाह की दृष्टि में वे बराबर नहीं। और अल्लाह अत्याचारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाता - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:20
ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَهَاجَرُوا۟ وَجَـٰهَدُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ أَعْظَمُ دَرَجَةً عِندَ ٱللَّهِ ۚ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْفَآئِزُونَ
9:20
जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से जिहाद किया, अल्लाह के यहाँ दर्जे में वे बहुत बड़े है और वही सफल है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:21
يُبَشِّرُهُمْ رَبُّهُم بِرَحْمَةٍ مِّنْهُ وَرِضْوَٰنٍ وَجَنَّـٰتٍ لَّهُمْ فِيهَا نَعِيمٌ مُّقِيمٌ
9:21
उन्हें उनका रब अपना दयालुता और प्रसन्नता और ऐसे बाग़ों की शुभ-सूचना देता है, जिनमें उनके लिए स्थायी सुख-सामग्री है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:22
خَـٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًا ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥٓ أَجْرٌ عَظِيمٌ
9:22
उनमें वे सदैव रहेंगे। निस्संदेह अल्लाह के पास बड़ा बदला है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:23
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ لَا تَتَّخِذُوٓا۟ ءَابَآءَكُمْ وَإِخْوَٰنَكُمْ أَوْلِيَآءَ إِنِ ٱسْتَحَبُّوا۟ ٱلْكُفْرَ عَلَى ٱلْإِيمَـٰنِ ۚ وَمَن يَتَوَلَّهُم مِّنكُمْ فَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
9:23
ऐ ईमान लानेवालो! अपने बाप और अपने भाइयों को अपने मित्र न बनाओ यदि ईमान के मुक़ाबले में कुफ़्र उन्हें प्रिय हो। तुममें से जो कोई उन्हें अपना मित्र बनाएगा, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी होंगे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:24
قُلْ إِن كَانَ ءَابَآؤُكُمْ وَأَبْنَآؤُكُمْ وَإِخْوَٰنُكُمْ وَأَزْوَٰجُكُمْ وَعَشِيرَتُكُمْ وَأَمْوَٰلٌ ٱقْتَرَفْتُمُوهَا وَتِجَـٰرَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَمَسَـٰكِنُ تَرْضَوْنَهَآ أَحَبَّ إِلَيْكُم مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَجِهَادٍ فِى سَبِيلِهِۦ فَتَرَبَّصُوا۟ حَتَّىٰ يَأْتِىَ ٱللَّهُ بِأَمْرِهِۦ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْفَـٰسِقِينَ
9:24
कह दो, "यदि तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई, तुम्हारी पत्नि यों और तुम्हारे रिश्ते-नातेवाले और माल, जो तुमने कमाए है और कारोबार जिसके मन्दा पड़ जाने का तुम्हें भय है और घर जिन्हें तुम पसन्द करते हो, तुम्हे अल्लाह और उसके रसूल और उसके मार्ग में जिहाद करने से अधिक प्रिय है तो प्रतीक्षा करो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला ले आए। औऱ अल्लाह अवज्ञाकारियों को मार्ग नहीं दिखाता।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:25
لَقَدْ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ فِى مَوَاطِنَ كَثِيرَةٍ ۙ وَيَوْمَ حُنَيْنٍ ۙ إِذْ أَعْجَبَتْكُمْ كَثْرَتُكُمْ فَلَمْ تُغْنِ عَنكُمْ شَيْـًٔا وَضَاقَتْ عَلَيْكُمُ ٱلْأَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ ثُمَّ وَلَّيْتُم مُّدْبِرِينَ
9:25
अल्लाह बहुत-से अवसरों पर तुम्हारी सहायता कर चुका है और हुनैन (की लड़ाई) के दिन भी, जब तुम अपनी अधिकता पर फूल गए, तो वह तुम्हारे कुछ काम न आई और धरती अपनी विशालता के बावजूद तुम पर तंग हो गई। फिर तुम पीठ फेरकर भाग खड़े हुए - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:26
ثُمَّ أَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَعَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ وَأَنزَلَ جُنُودًا لَّمْ تَرَوْهَا وَعَذَّبَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ۚ وَذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلْكَـٰفِرِينَ
9:26
अन्ततः अल्लाह ने अपने रसूल पर और मोमिनों पर अपनी सकीनत (प्रशान्ति) उतारी और ऐसी सेनाएँ उतारी जिनको तुमने नहीं देखा। और इनकार करनेवालों को यातना दी, और यही इनकार करनेवालों का बदला है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:27
ثُمَّ يَتُوبُ ٱللَّهُ مِنۢ بَعْدِ ذَٰلِكَ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
9:27
फिर इसके बाद अल्लाह जिसको चाहता है उसे तौबा नसीब करता है। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:28
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِنَّمَا ٱلْمُشْرِكُونَ نَجَسٌ فَلَا يَقْرَبُوا۟ ٱلْمَسْجِدَ ٱلْحَرَامَ بَعْدَ عَامِهِمْ هَـٰذَا ۚ وَإِنْ خِفْتُمْ عَيْلَةً فَسَوْفَ يُغْنِيكُمُ ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦٓ إِن شَآءَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
9:28
ऐ ईमान लानेवालो! मुशरिक तो बस अपवित्र ही है। अतः इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे हराम के पास न आएँ। और यदि तुम्हें निर्धनता का भय हो तो आगे यदि अल्लाह चाहेगा तो तुम्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध कर देगा। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:29
قَـٰتِلُوا۟ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَلَا بِٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَلَا يُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَلَا يَدِينُونَ دِينَ ٱلْحَقِّ مِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُوا۟ ٱلْكِتَـٰبَ حَتَّىٰ يُعْطُوا۟ ٱلْجِزْيَةَ عَن يَدٍ وَهُمْ صَـٰغِرُونَ
9:29
वे किताबवाले जो न अल्लाह पर ईमान रखते है और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते है और न सत्यधर्म का अनुपालन करते है, उनसे लड़ो, यहाँ तक कि वे सत्ता से विलग होकर और छोटे (अधीनस्थ) बनकर जिज़्या देने लगे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:30
وَقَالَتِ ٱلْيَهُودُ عُزَيْرٌ ٱبْنُ ٱللَّهِ وَقَالَتِ ٱلنَّصَـٰرَى ٱلْمَسِيحُ ٱبْنُ ٱللَّهِ ۖ ذَٰلِكَ قَوْلُهُم بِأَفْوَٰهِهِمْ ۖ يُضَـٰهِـُٔونَ قَوْلَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِن قَبْلُ ۚ قَـٰتَلَهُمُ ٱللَّهُ ۚ أَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ
9:30
यहूदी करते है, "उज़ैर अल्लाह का बेटा है।" और ईसाई कहते है, "मसीह अल्लाह का बेटा है।" ये उनकी अपने मुँह की बातें हैं। ये उन लोगों की-सी बातें कर रहे है जो इससे पहले इनकार कर चुके है। अल्लाह की मार इन पर! ये कहाँ से औधे हुए जा रहे हैं! - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:31
ٱتَّخَذُوٓا۟ أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَـٰنَهُمْ أَرْبَابًا مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَٱلْمَسِيحَ ٱبْنَ مَرْيَمَ وَمَآ أُمِرُوٓا۟ إِلَّا لِيَعْبُدُوٓا۟ إِلَـٰهًا وَٰحِدًا ۖ لَّآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ سُبْحَـٰنَهُۥ عَمَّا يُشْرِكُونَ
9:31
उन्होंने अल्लाह से हटकर अपने धर्मज्ञाताओं और संसार-त्यागी संतों और मरयम के बेटे ईसा को अपने रब बना लिए है - हालाँकि उन्हें इसके सिवा और कोई आदेश नहीं दिया गया था कि अकेले इष्टि-पूज्य की वे बन्दगी करें, जिसक सिवा कोई और पूज्य नहीं। उसकी महिमा के प्रतिकूल है वह शिर्क जो ये लोग करते है। - - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:32
يُرِيدُونَ أَن يُطْفِـُٔوا۟ نُورَ ٱللَّهِ بِأَفْوَٰهِهِمْ وَيَأْبَى ٱللَّهُ إِلَّآ أَن يُتِمَّ نُورَهُۥ وَلَوْ كَرِهَ ٱلْكَـٰفِرُونَ
9:32
चाहते है कि अल्लाह के प्रकाश को अपने मुँह से बुझा दें, किन्तु अल्लाह अपने प्रकाश को पूर्ण किए बिना नहीं रहेगा, चाहे इनकार करनेवालों को अप्रिय ही लगे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:33
هُوَ ٱلَّذِىٓ أَرْسَلَ رَسُولَهُۥ بِٱلْهُدَىٰ وَدِينِ ٱلْحَقِّ لِيُظْهِرَهُۥ عَلَى ٱلدِّينِ كُلِّهِۦ وَلَوْ كَرِهَ ٱلْمُشْرِكُونَ
9:33
वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा ताकि उसे तमाम दीन (धर्म) पर प्रभावी कर दे, चाहे मुशरिकों को बुरा लगे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:34
۞ يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِنَّ كَثِيرًا مِّنَ ٱلْأَحْبَارِ وَٱلرُّهْبَانِ لَيَأْكُلُونَ أَمْوَٰلَ ٱلنَّاسِ بِٱلْبَـٰطِلِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ ۗ وَٱلَّذِينَ يَكْنِزُونَ ٱلذَّهَبَ وَٱلْفِضَّةَ وَلَا يُنفِقُونَهَا فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
9:34
ऐ ईमान लानेवालो! अवश्य ही बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी संत ऐसे है जो लोगो को माल नाहक़ खाते है और अल्लाह के मार्ग से रोकते है, और जो लोग सोना और चाँदी एकत्र करके रखते है और उन्हें अल्लाह के मार्ग में ख़र्च नहीं करते, उन्हें दुखद यातना की शुभ-सूचना दे दो - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:35
يَوْمَ يُحْمَىٰ عَلَيْهَا فِى نَارِ جَهَنَّمَ فَتُكْوَىٰ بِهَا جِبَاهُهُمْ وَجُنُوبُهُمْ وَظُهُورُهُمْ ۖ هَـٰذَا مَا كَنَزْتُمْ لِأَنفُسِكُمْ فَذُوقُوا۟ مَا كُنتُمْ تَكْنِزُونَ
9:35
जिस दिन उनको जहन्नम की आग में तपाया जाएगा फिर उससे उनके ललाटो और उनके पहलुओ और उनकी पीठों को दाग़ा जाएगा (और कहा जाएगा), "यहीं है जो तुमने अपने लिए संचय किया, तो जो कुछ तुम संचित करते रहे हो, उसका मज़ा चखो!" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:36
إِنَّ عِدَّةَ ٱلشُّهُورِ عِندَ ٱللَّهِ ٱثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِى كِتَـٰبِ ٱللَّهِ يَوْمَ خَلَقَ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضَ مِنْهَآ أَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ۚ ذَٰلِكَ ٱلدِّينُ ٱلْقَيِّمُ ۚ فَلَا تَظْلِمُوا۟ فِيهِنَّ أَنفُسَكُمْ ۚ وَقَـٰتِلُوا۟ ٱلْمُشْرِكِينَ كَآفَّةً كَمَا يُقَـٰتِلُونَكُمْ كَآفَّةً ۚ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلْمُتَّقِينَ
9:36
निस्संदेह महीनों की संख्या - अल्लाह के अध्यादेश में उस दिन से जब उसने आकाशों और धरती को पैदा किया - अल्लाह की दृष्टि में बारह महीने है। उनमें चार आदर के है, यही सीधा दीन (धर्म) है। अतः तुम उन (महीनों) में अपने ऊपर अत्याचार न करो। और मुशरिकों से तुम सबके सब लड़ो, जिस प्रकार वे सब मिलकर तुमसे लड़ते है। और जान लो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:37
إِنَّمَا ٱلنَّسِىٓءُ زِيَادَةٌ فِى ٱلْكُفْرِ ۖ يُضَلُّ بِهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ يُحِلُّونَهُۥ عَامًا وَيُحَرِّمُونَهُۥ عَامًا لِّيُوَاطِـُٔوا۟ عِدَّةَ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ فَيُحِلُّوا۟ مَا حَرَّمَ ٱللَّهُ ۚ زُيِّنَ لَهُمْ سُوٓءُ أَعْمَـٰلِهِمْ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْكَـٰفِرِينَ
9:37
(आदर के महीनों का) हटाना तो बस कुफ़्र में एक बृद्धि है, जिससे इनकार करनेवाले गुमराही में पड़ते है। किसी वर्ष वे उसे हलाल (वैध) ठहरा लेते है और किसी वर्ष उसको हराम ठहरा लेते है, ताकि अल्लाह के आदृत (महीनों) की संख्या पूरी कर लें, और इस प्रकार अल्लाह के हराम किए हुए को वैध ठहरा ले। उनके अपने बुरे कर्म उनके लिए सुहाने हो गए है और अल्लाह इनकार करनेवाले लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:38
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مَا لَكُمْ إِذَا قِيلَ لَكُمُ ٱنفِرُوا۟ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ٱثَّاقَلْتُمْ إِلَى ٱلْأَرْضِ ۚ أَرَضِيتُم بِٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا مِنَ ٱلْـَٔاخِرَةِ ۚ فَمَا مَتَـٰعُ ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا فِى ٱلْـَٔاخِرَةِ إِلَّا قَلِيلٌ
9:38
ऐ ईमान लानेवालो! तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है, "अल्लाह के मार्ग में निकलो" तो तुम धरती पर ढहे जाते हो? क्या तुम आख़िरत की अपेक्षा सांसारिक जीवन पर राज़ी हो गए? सांसारिक जीवन की सुख-सामग्री तो आख़िरत के हिसाब में है कुछ थोड़ी ही! - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:39
إِلَّا تَنفِرُوا۟ يُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا أَلِيمًا وَيَسْتَبْدِلْ قَوْمًا غَيْرَكُمْ وَلَا تَضُرُّوهُ شَيْـًٔا ۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَىْءٍ قَدِيرٌ
9:39
यदि तुम निकालोगे तो वह तुम्हें दुखद यातना देगा और वह तुम्हारी जगह दूसरे गिरोह को ले आएगा और तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे। और अल्लाह हर चीज़ की सामर्थ्य रखता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:40
إِلَّا تَنصُرُوهُ فَقَدْ نَصَرَهُ ٱللَّهُ إِذْ أَخْرَجَهُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ثَانِىَ ٱثْنَيْنِ إِذْ هُمَا فِى ٱلْغَارِ إِذْ يَقُولُ لِصَـٰحِبِهِۦ لَا تَحْزَنْ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَنَا ۖ فَأَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَيْهِ وَأَيَّدَهُۥ بِجُنُودٍ لَّمْ تَرَوْهَا وَجَعَلَ كَلِمَةَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ ٱلسُّفْلَىٰ ۗ وَكَلِمَةُ ٱللَّهِ هِىَ ٱلْعُلْيَا ۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
9:40
यदि तुम उसकी सहायता न भी करो तो अल्लाह उसकी सहायता उस समय कर चुका है जब इनकार करनेवालों ने उसे इस स्थिति में निकाला कि वह केवल दो में का दूसरा था, जब वे दोनों गुफ़ा में थे। जबकि वह अपने साथी से कह रहा था, "शोकाकुल न हो। अवश्यमेव अल्लाह हमारे साथ है।" फिर अल्लाह ने उसपर अपनी ओर से सकीनत (प्रशान्ति) उतारी और उसकी सहायता ऐसी सेनाओं से की जिन्हें तुम देख न सके और इनकार करनेवालों का बोल नीचा कर दिया, बोल तो अल्लाह ही का ऊँचा रहता है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशील, तत्वदर्शी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:41
ٱنفِرُوا۟ خِفَافًا وَثِقَالًا وَجَـٰهِدُوا۟ بِأَمْوَٰلِكُمْ وَأَنفُسِكُمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ ۚ ذَٰلِكُمْ خَيْرٌ لَّكُمْ إِن كُنتُمْ تَعْلَمُونَ
9:41
हलके और बोझिल निकल पड़ो और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करो! यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:42
لَوْ كَانَ عَرَضًا قَرِيبًا وَسَفَرًا قَاصِدًا لَّٱتَّبَعُوكَ وَلَـٰكِنۢ بَعُدَتْ عَلَيْهِمُ ٱلشُّقَّةُ ۚ وَسَيَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ لَوِ ٱسْتَطَعْنَا لَخَرَجْنَا مَعَكُمْ يُهْلِكُونَ أَنفُسَهُمْ وَٱللَّهُ يَعْلَمُ إِنَّهُمْ لَكَـٰذِبُونَ
9:42
यदि निकट (भविष्य में) ही कुछ मिलनेवाला होता और सफ़र भी हलका होता तो वे अवश्य तुम्हारे पीछे चल पड़ते, किन्तु मार्ग की दूरी उन्हें कठिन और बहुत दीर्घ प्रतीत हुई। अब वे अल्लाह की क़समें खाएँगे कि, "यदि हममें इसकी सामर्थ्य होती तो हम अवश्य तुम्हारे साथ निकलते।" वे अपने आपको तबाही में डाल रहे है और अल्लाह भली-भाँति जानता है कि निश्चय ही वे झूठे है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:43
عَفَا ٱللَّهُ عَنكَ لِمَ أَذِنتَ لَهُمْ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَكَ ٱلَّذِينَ صَدَقُوا۟ وَتَعْلَمَ ٱلْكَـٰذِبِينَ
9:43
अल्लाह ने तुम्हे क्षमा कर दिया! तुमने उन्हें क्यों अनुमति दे दी, यहाँ तक कि जो लोग सच्चे है वे तुम्हारे सामने प्रकट हो जाते और झूठों को भी तुम जान लेते? - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:44
لَا يَسْتَـْٔذِنُكَ ٱلَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ أَن يُجَـٰهِدُوا۟ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌۢ بِٱلْمُتَّقِينَ
9:44
जो लोग अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान रखते है, वे तुमसे कभी यह नहीं चाहेंगे कि उन्हें अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करने से माफ़ रखा जाए। और अल्लाह डर रखनेवालों को भली-भाँति जानता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:45
إِنَّمَا يَسْتَـْٔذِنُكَ ٱلَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَٱرْتَابَتْ قُلُوبُهُمْ فَهُمْ فِى رَيْبِهِمْ يَتَرَدَّدُونَ
9:45
तुमसे छुट्टी तो बस वही लोग माँगते है जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान नहीं रखते, और जिनके दिल सन्देह में पड़े है, तो वे अपने सन्देह ही में डाँवाडोल हो रहे है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:46
۞ وَلَوْ أَرَادُوا۟ ٱلْخُرُوجَ لَأَعَدُّوا۟ لَهُۥ عُدَّةً وَلَـٰكِن كَرِهَ ٱللَّهُ ٱنۢبِعَاثَهُمْ فَثَبَّطَهُمْ وَقِيلَ ٱقْعُدُوا۟ مَعَ ٱلْقَـٰعِدِينَ
9:46
यदि वे निकलने का इरादा करते तो इसके लिए कुछ सामग्री जुटाते, किन्तु अल्लाह ने उनके उठने को नापसन्द किया तो उसने उन्हें रोक दिया। उनके कह दिया गया, "बैठनेवालों के साथ बैठ रहो।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:47
لَوْ خَرَجُوا۟ فِيكُم مَّا زَادُوكُمْ إِلَّا خَبَالًا وَلَأَوْضَعُوا۟ خِلَـٰلَكُمْ يَبْغُونَكُمُ ٱلْفِتْنَةَ وَفِيكُمْ سَمَّـٰعُونَ لَهُمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌۢ بِٱلظَّـٰلِمِينَ
9:47
यदि वे तुम्हारे साथ निकलते भी तो तुम्हारे अन्दर ख़राबी के सिवा किसी और चीज़ की अभिवृद्धि नहीं करते। और वे तुम्हारे बीच उपद्रव मचाने के लिए दौड़-धूप करते और तुममें उनकी सुननेवाले है। और अल्लाह अत्याचारियों को भली-भाँति जानता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:48
لَقَدِ ٱبْتَغَوُا۟ ٱلْفِتْنَةَ مِن قَبْلُ وَقَلَّبُوا۟ لَكَ ٱلْأُمُورَ حَتَّىٰ جَآءَ ٱلْحَقُّ وَظَهَرَ أَمْرُ ٱللَّهِ وَهُمْ كَـٰرِهُونَ
9:48
उन्होंने तो इससे पहले भी उपद्रव मचाना चाहा था और वे तुम्हारे विरुद्ध घटनाओं और मामलों के उलटने-पलटने में लगे रहे, यहाँ तक कि हक़ आ गया और अल्लाह को आदेश प्रकट होकर रहा, यद्यपि उन्हें अप्रिय ही लगता रहा - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:49
وَمِنْهُم مَّن يَقُولُ ٱئْذَن لِّى وَلَا تَفْتِنِّىٓ ۚ أَلَا فِى ٱلْفِتْنَةِ سَقَطُوا۟ ۗ وَإِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِيطَةٌۢ بِٱلْكَـٰفِرِينَ
9:49
उनमें कोई है, जो कहता है, "मुझे इजाज़त दे दीजिए, मुझे फ़ितने में न डालिए।" जान लो कि वे फ़ितने में तो पड़ ही चुके है और निश्चय ही जहन्नम भी इनकार करनेवालों को घेर रही है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:50
إِن تُصِبْكَ حَسَنَةٌ تَسُؤْهُمْ ۖ وَإِن تُصِبْكَ مُصِيبَةٌ يَقُولُوا۟ قَدْ أَخَذْنَآ أَمْرَنَا مِن قَبْلُ وَيَتَوَلَّوا۟ وَّهُمْ فَرِحُونَ
9:50
यदि तुम्हें कोई अच्छी हालत पेश आती है, तो उन्हें बुरा लगता है औऱ यदि तुम पर कोई मुसीबत आ जाती है, तो वे कहते है, "हमने तो अपना काम पहले ही सँभाल लिया था।" और वे ख़ुश होते हुए पलटते है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:51
قُل لَّن يُصِيبَنَآ إِلَّا مَا كَتَبَ ٱللَّهُ لَنَا هُوَ مَوْلَىٰنَا ۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ ٱلْمُؤْمِنُونَ
9:51
कह दो, "हमें कुछ भी पेश नहीं आ सकता सिवाय उसके जो अल्लाह ने लिख दिया है। वही हमारा स्वामी है। और ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:52
قُلْ هَلْ تَرَبَّصُونَ بِنَآ إِلَّآ إِحْدَى ٱلْحُسْنَيَيْنِ ۖ وَنَحْنُ نَتَرَبَّصُ بِكُمْ أَن يُصِيبَكُمُ ٱللَّهُ بِعَذَابٍ مِّنْ عِندِهِۦٓ أَوْ بِأَيْدِينَا ۖ فَتَرَبَّصُوٓا۟ إِنَّا مَعَكُم مُّتَرَبِّصُونَ
9:52
कहो, "तुम हमारे लिए दो भलाईयों में से किसी एक भलाई के सिवा किसकी प्रतीक्षा कर सकते है? जबकि हमें तुम्हारे हक़ में इसी की प्रतिक्षा है कि अल्लाह अपनी ओर से तुम्हें कोई यातना देता है या हमारे हाथों दिलाता है। अच्छा तो तुम भी प्रतीक्षा करो, हम भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा कर रहे है।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:53
قُلْ أَنفِقُوا۟ طَوْعًا أَوْ كَرْهًا لَّن يُتَقَبَّلَ مِنكُمْ ۖ إِنَّكُمْ كُنتُمْ قَوْمًا فَـٰسِقِينَ
9:53
कह दो, "तुम चाहे स्वेच्छापूर्वक ख़र्च करो या अनिच्छापूर्वक, तुमसे कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। निस्संदेह तुम अवज्ञाकारी लोग हो।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:54
وَمَا مَنَعَهُمْ أَن تُقْبَلَ مِنْهُمْ نَفَقَـٰتُهُمْ إِلَّآ أَنَّهُمْ كَفَرُوا۟ بِٱللَّهِ وَبِرَسُولِهِۦ وَلَا يَأْتُونَ ٱلصَّلَوٰةَ إِلَّا وَهُمْ كُسَالَىٰ وَلَا يُنفِقُونَ إِلَّا وَهُمْ كَـٰرِهُونَ
9:54
उनके ख़र्च के स्वीकृत होने में इसके अतिरिक्त और कोई चीज़ बाधक नहीं कि उन्होंने अल्लाह औऱ उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया। नमाज़ को आते है तो बस हारे जी आते है और ख़र्च करते है, तो अनिच्छापूर्वक ही - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:55
فَلَا تُعْجِبْكَ أَمْوَٰلُهُمْ وَلَآ أَوْلَـٰدُهُمْ ۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُعَذِّبَهُم بِهَا فِى ٱلْحَيَوٰةِ ٱلدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنفُسُهُمْ وَهُمْ كَـٰفِرُونَ
9:55
अतः उनके माल तुम्हें मोहित न करें और न उनकी सन्तान ही। अल्लाह तो बस यह चाहता है कि उनके द्वारा उन्हें सांसारिक जीवन में यातना दे और उनके प्राण इस दशा में निकलें कि वे इनकार करनेवाले ही रहे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:56
وَيَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ إِنَّهُمْ لَمِنكُمْ وَمَا هُم مِّنكُمْ وَلَـٰكِنَّهُمْ قَوْمٌ يَفْرَقُونَ
9:56
वे अल्लाह की क़समें खाते है कि वे तुम्हीं में से है, हालाँकि वे तुममें से नहीं है, बल्कि वे ऐसे लोग है जो त्रस्त रहते है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:57
لَوْ يَجِدُونَ مَلْجَـًٔا أَوْ مَغَـٰرَٰتٍ أَوْ مُدَّخَلًا لَّوَلَّوْا۟ إِلَيْهِ وَهُمْ يَجْمَحُونَ
9:57
यदि वे कोई शरण पा लें या कोई गुफा या घुस बैठने की जगह, तो अवश्य ही वे बगटुट उसकी ओर उल्टे भाग जाएँ - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:58
وَمِنْهُم مَّن يَلْمِزُكَ فِى ٱلصَّدَقَـٰتِ فَإِنْ أُعْطُوا۟ مِنْهَا رَضُوا۟ وَإِن لَّمْ يُعْطَوْا۟ مِنْهَآ إِذَا هُمْ يَسْخَطُونَ
9:58
और उनमें से कुछ लोग सदक़ो के विषय में तुम पर चोटे करते है। किन्तु यदि उन्हें उसमें से दे दिया जाए तो प्रसन्न हो जाएँ और यदि उन्हें उसमें से न दिया गया तो क्या देखोगे कि वे क्रोधित होने लगते है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:59
وَلَوْ أَنَّهُمْ رَضُوا۟ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ وَقَالُوا۟ حَسْبُنَا ٱللَّهُ سَيُؤْتِينَا ٱللَّهُ مِن فَضْلِهِۦ وَرَسُولُهُۥٓ إِنَّآ إِلَى ٱللَّهِ رَٰغِبُونَ
9:59
यदि अल्लाह और उसके रसूल ने जो कुछ उन्हें दिया था, उसपर वे राज़ी रहते औऱ कहते कि "हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है। अल्लाह हमें जल्द ही अपने अनुग्रह से देगा और उसका रसूल भी। हम तो अल्लाह ही की ओऱ उन्मुख है।" (तो यह उनके लिए अच्छा होता) - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:60
۞ إِنَّمَا ٱلصَّدَقَـٰتُ لِلْفُقَرَآءِ وَٱلْمَسَـٰكِينِ وَٱلْعَـٰمِلِينَ عَلَيْهَا وَٱلْمُؤَلَّفَةِ قُلُوبُهُمْ وَفِى ٱلرِّقَابِ وَٱلْغَـٰرِمِينَ وَفِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱبْنِ ٱلسَّبِيلِ ۖ فَرِيضَةً مِّنَ ٱللَّهِ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
9:60
सदक़े तो बस ग़रीबों, मुहताजों और उन लोगों के लिए है, जो काम पर नियुक्त हों और उनके लिए जिनके दिलों को आकृष्ट करना औऱ परचाना अभीष्ट हो और गर्दनों को छुड़ाने और क़र्ज़दारों और तावान भरनेवालों की सहायता करने में, अल्लाह के मार्ग में, मुसाफ़िरों की सहायता करने में लगाने के लिए है। यह अल्लाह की ओर से ठहराया हुआ हुक्म है। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:61
وَمِنْهُمُ ٱلَّذِينَ يُؤْذُونَ ٱلنَّبِىَّ وَيَقُولُونَ هُوَ أُذُنٌ ۚ قُلْ أُذُنُ خَيْرٍ لَّكُمْ يُؤْمِنُ بِٱللَّهِ وَيُؤْمِنُ لِلْمُؤْمِنِينَ وَرَحْمَةٌ لِّلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مِنكُمْ ۚ وَٱلَّذِينَ يُؤْذُونَ رَسُولَ ٱللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
9:61
और उनमें कुछ लोग ऐसे हैं, जो नबी को दुख देते है और कहते है, "वह तो निरा कान है!" कह दो, "वह सर्वथा कान तुम्हारी भलाई के लिए है। वह अल्लाह पर ईमान रखता है और ईमानवालों पर भी विश्वास करता है। और उन लोगों के लिए सर्वथा दयालुता है जो तुममें से ईमान लाए है। रहे वे लोग जो अल्लाह के रसूल को दुख देते है, उनके लिए दुखद यातना है।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:62
يَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ لَكُمْ لِيُرْضُوكُمْ وَٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥٓ أَحَقُّ أَن يُرْضُوهُ إِن كَانُوا۟ مُؤْمِنِينَ
9:62
वे तुम लोगों के सामने अल्लाह की क़समें खाते है, ताकि तुम्हें राज़ी कर लें, हालाँकि यदि वे मोमिन है तो अल्लाह और उसका रसूल इसके ज़्यादा हक़दार है कि उनको राज़ी करें - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:63
أَلَمْ يَعْلَمُوٓا۟ أَنَّهُۥ مَن يُحَادِدِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَأَنَّ لَهُۥ نَارَ جَهَنَّمَ خَـٰلِدًا فِيهَا ۚ ذَٰلِكَ ٱلْخِزْىُ ٱلْعَظِيمُ
9:63
क्या उन्हें मालूम नहीं कि जो अल्लाह औऱ उसके रसूल का विरोध करता है, उसके लिए जहन्नम की आग है जिसमें वह सदैव रहेगा। यह बहुत बड़ी रुसवाई है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:64
يَحْذَرُ ٱلْمُنَـٰفِقُونَ أَن تُنَزَّلَ عَلَيْهِمْ سُورَةٌ تُنَبِّئُهُم بِمَا فِى قُلُوبِهِمْ ۚ قُلِ ٱسْتَهْزِءُوٓا۟ إِنَّ ٱللَّهَ مُخْرِجٌ مَّا تَحْذَرُونَ
9:64
मुनाफ़िक़ (कपटाचारी) डर रहे है कि कहीं उनके बारे में कोई ऐसी सूरा न अवतरित हो जाए जो वह सब कुछ उनपर खोल दे, जो उनके दिलों में है। कह दो, "मज़ाक़ उड़ा लो, अल्लाह तो उसे प्रकट करके रहेगा, जिसका तुम्हें डर है।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:65
وَلَئِن سَأَلْتَهُمْ لَيَقُولُنَّ إِنَّمَا كُنَّا نَخُوضُ وَنَلْعَبُ ۚ قُلْ أَبِٱللَّهِ وَءَايَـٰتِهِۦ وَرَسُولِهِۦ كُنتُمْ تَسْتَهْزِءُونَ
9:65
और यदि उनसे पूछो तो कह देंगे, "हम तो केवल बातें और हँसी-खेल कर रहे थे।" कहो, "क्या अल्लाह, उसकी आयतों और उसके रसूल के साथ हँसी-मज़ाक़ करते थे? - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:66
لَا تَعْتَذِرُوا۟ قَدْ كَفَرْتُم بَعْدَ إِيمَـٰنِكُمْ ۚ إِن نَّعْفُ عَن طَآئِفَةٍ مِّنكُمْ نُعَذِّبْ طَآئِفَةًۢ بِأَنَّهُمْ كَانُوا۟ مُجْرِمِينَ
9:66
"बहाने न बनाओ, तुमने अपने ईमान के पश्चात इनकार किया। यदि हम तुम्हारे कुछ लोगों को क्षमा भी कर दें तो भी कुछ लोगों को यातना देकर ही रहेंगे, क्योंकि वे अपराधी हैं।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:67
ٱلْمُنَـٰفِقُونَ وَٱلْمُنَـٰفِقَـٰتُ بَعْضُهُم مِّنۢ بَعْضٍ ۚ يَأْمُرُونَ بِٱلْمُنكَرِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ ٱلْمَعْرُوفِ وَيَقْبِضُونَ أَيْدِيَهُمْ ۚ نَسُوا۟ ٱللَّهَ فَنَسِيَهُمْ ۗ إِنَّ ٱلْمُنَـٰفِقِينَ هُمُ ٱلْفَـٰسِقُونَ
9:67
मुनाफ़िक़ पुरुष और मुनाफ़िक़ स्त्रियाँ सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। वे बुराई का हुक्म देते है और भलाई से रोकते है और हाथों को बन्द किए रहते है। वे अल्लाह को भूल बैठे तो उसने भी उन्हें भुला दिया। निश्चय ही मुनाफ़िक़ अवज्ञाकारी हैं - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:68
وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلْمُنَـٰفِقِينَ وَٱلْمُنَـٰفِقَـٰتِ وَٱلْكُفَّارَ نَارَ جَهَنَّمَ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ هِىَ حَسْبُهُمْ ۚ وَلَعَنَهُمُ ٱللَّهُ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِيمٌ
9:68
अल्लाह ने मुनाफ़िक़ पुरुषों और मुनाफ़िक़ स्त्रियों और इनकार करनेवालों से जहन्नम की आग का वादा किया है, जिसमें वे सदैव ही रहेंगे। वही उनके लिए काफ़ी है और अल्लाह ने उनपर लानत की, और उनके लिए स्थाई यातना है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:69
كَٱلَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ كَانُوٓا۟ أَشَدَّ مِنكُمْ قُوَّةً وَأَكْثَرَ أَمْوَٰلًا وَأَوْلَـٰدًا فَٱسْتَمْتَعُوا۟ بِخَلَـٰقِهِمْ فَٱسْتَمْتَعْتُم بِخَلَـٰقِكُمْ كَمَا ٱسْتَمْتَعَ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِكُم بِخَلَـٰقِهِمْ وَخُضْتُمْ كَٱلَّذِى خَاضُوٓا۟ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَـٰلُهُمْ فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْخَـٰسِرُونَ
9:69
उन लोगों की तरह, जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं, वे शक्ति में तुमसे बढ़-बढ़कर थे और माल और औलाद में भी बढ़े हुए थे। फिर उन्होंने अपने हिस्से का मज़ा उठाना चाहा और तुमने भी अपने हिस्से का मज़ा उठाना चाहा, जिस प्रकार कि तुमसे पहले के लोगों ने अपने हिस्से का मज़ा उठाना चाहा, और जिस वाद-विवाद में तुम पड़े थे तुम भी वाद-विवाद में पड़ गए। ये वही लोग है जिनका किया-धरा दुनिया और आख़िरत में अकारथ गया, और वही घाटे में है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:70
أَلَمْ يَأْتِهِمْ نَبَأُ ٱلَّذِينَ مِن قَبْلِهِمْ قَوْمِ نُوحٍ وَعَادٍ وَثَمُودَ وَقَوْمِ إِبْرَٰهِيمَ وَأَصْحَـٰبِ مَدْيَنَ وَٱلْمُؤْتَفِكَـٰتِ ۚ أَتَتْهُمْ رُسُلُهُم بِٱلْبَيِّنَـٰتِ ۖ فَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيَظْلِمَهُمْ وَلَـٰكِن كَانُوٓا۟ أَنفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ
9:70
क्या उन्हें उन लोगों का वृतान्त नहीं पहुँचा जो उनसे पहले गुज़रे - नूह के लोगो का, आद और समूद का, और इबराहीम की क़ौम का और मदयनवालों का और उन बस्तियों का जिन्हें उलट दिया गया? उसके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए थे, फिर अल्लाह ऐसा न था कि वह उनपर अत्याचार करता, किन्तु वे स्वयं अपने-आप पर अत्याचार कर रहे थे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:71
وَٱلْمُؤْمِنُونَ وَٱلْمُؤْمِنَـٰتُ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَآءُ بَعْضٍ ۚ يَأْمُرُونَ بِٱلْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ ٱلْمُنكَرِ وَيُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُؤْتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَيُطِيعُونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ ۚ أُو۟لَـٰٓئِكَ سَيَرْحَمُهُمُ ٱللَّهُ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
9:71
रहे मोमिन मर्द औऱ मोमिन औरतें, वे सब परस्पर एक-दूसरे के मित्र है। भलाई का हुक्म देते है और बुराई से रोकते है। नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात देते है और अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करते हैं। ये वे लोग है, जिनकर शीघ्र ही अल्लाह दया करेगा। निस्सन्देह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:72
وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَـٰتِ جَنَّـٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا وَمَسَـٰكِنَ طَيِّبَةً فِى جَنَّـٰتِ عَدْنٍ ۚ وَرِضْوَٰنٌ مِّنَ ٱللَّهِ أَكْبَرُ ۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ
9:72
मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों से अल्लाह ने ऐसे बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, जिनमें वे सदैव रहेंगे और सदाबहार बाग़ों में पवित्र निवास गृहों का (भी वादा है) और, अल्लाह की प्रसन्नता और रज़ामन्दी का; जो सबसे बढ़कर है। यही सबसे बड़ी सफलता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:73
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِىُّ جَـٰهِدِ ٱلْكُفَّارَ وَٱلْمُنَـٰفِقِينَ وَٱغْلُظْ عَلَيْهِمْ ۚ وَمَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ ۖ وَبِئْسَ ٱلْمَصِيرُ
9:73
ऐ नबी! इनकार करनेवालों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। अन्ततः उनका ठिकाना जहन्नम है और वह जा पहुँचने की बहुत बुरी जगह है! - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:74
يَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ مَا قَالُوا۟ وَلَقَدْ قَالُوا۟ كَلِمَةَ ٱلْكُفْرِ وَكَفَرُوا۟ بَعْدَ إِسْلَـٰمِهِمْ وَهَمُّوا۟ بِمَا لَمْ يَنَالُوا۟ ۚ وَمَا نَقَمُوٓا۟ إِلَّآ أَنْ أَغْنَىٰهُمُ ٱللَّهُ وَرَسُولُهُۥ مِن فَضْلِهِۦ ۚ فَإِن يَتُوبُوا۟ يَكُ خَيْرًا لَّهُمْ ۖ وَإِن يَتَوَلَّوْا۟ يُعَذِّبْهُمُ ٱللَّهُ عَذَابًا أَلِيمًا فِى ٱلدُّنْيَا وَٱلْـَٔاخِرَةِ ۚ وَمَا لَهُمْ فِى ٱلْأَرْضِ مِن وَلِىٍّ وَلَا نَصِيرٍ
9:74
वे अल्लाह की क़समें खाते है कि उन्होंने नहीं कहा, हालाँकि उन्होंने अवश्य ही कुफ़्र की बात कही है और अपने इस्लाम स्वीकार करने के पश्चात इनकार किया, और वह चाहा जो वे न पा सके। उनके प्रतिशोध का कारण तो यह है कि अल्लाह और उसके रसूल ने अपने अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर दिया। अब यदि वे तौबा कर लें तो उन्हीं के लिए अच्छा है और यदि उन्होंने मुँह मोड़ा तो अल्लाह उन्हें दुनिया और आख़िरत में दुखद यातना देगा और धरती में उनका न कोई मित्र होगा और न सहायक - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:75
۞ وَمِنْهُم مَّنْ عَـٰهَدَ ٱللَّهَ لَئِنْ ءَاتَىٰنَا مِن فَضْلِهِۦ لَنَصَّدَّقَنَّ وَلَنَكُونَنَّ مِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
9:75
और उनमें से कुछ लोग ऐसे भी है जिन्होने अल्लाह को वचन दिया था कि "यदि उसने हमें अपने अनुग्रह से दिया तो हम अवश्य दान करेंगे और नेक होकर रहेंगे।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:76
فَلَمَّآ ءَاتَىٰهُم مِّن فَضْلِهِۦ بَخِلُوا۟ بِهِۦ وَتَوَلَّوا۟ وَّهُم مُّعْرِضُونَ
9:76
किन्तु जब अल्लाह ने उन्हें अपने अनुग्रह से दिया तो वे उसमें कंजूसी करने लगे और पहलू बचाकर फिर गए - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:77
فَأَعْقَبَهُمْ نِفَاقًا فِى قُلُوبِهِمْ إِلَىٰ يَوْمِ يَلْقَوْنَهُۥ بِمَآ أَخْلَفُوا۟ ٱللَّهَ مَا وَعَدُوهُ وَبِمَا كَانُوا۟ يَكْذِبُونَ
9:77
फिर परिणाम यह हुआ कि उसने उनके दिलों में उस दिन तक के लिए कपटाचार डाल दिया, जब वे उससे मिलेंगे, इसलिए कि उन्होंने अल्लाह से जो प्रतिज्ञा की थी उसे भंग कर दिया और इसलिए भी कि वे झूठ बोलते रहे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:78
أَلَمْ يَعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ يَعْلَمُ سِرَّهُمْ وَنَجْوَىٰهُمْ وَأَنَّ ٱللَّهَ عَلَّـٰمُ ٱلْغُيُوبِ
9:78
क्या उन्हें खबर नहीं कि अल्लाह उनका भेद और उनकी कानाफुसियों को अच्छी तरह जानता है और यह कि अल्लाह परोक्ष की सारी बातों को भली-भाँति जानता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:79
ٱلَّذِينَ يَلْمِزُونَ ٱلْمُطَّوِّعِينَ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ فِى ٱلصَّدَقَـٰتِ وَٱلَّذِينَ لَا يَجِدُونَ إِلَّا جُهْدَهُمْ فَيَسْخَرُونَ مِنْهُمْ ۙ سَخِرَ ٱللَّهُ مِنْهُمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
9:79
जो लोग स्वेच्छापूर्वक देनेवाले मोमिनों पर उनके सदक़ो (दान) के विषय में चोटें करते है और उन लोगों का उपहास करते है, जिनके पास इसके सिवा कुछ नहीं जो वे मशक़्क़त उठाकर देते है, उन (उपहास करनेवालों) का उपहास अल्लाह ने किया और उनके लिए दुखद यातना है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:80
ٱسْتَغْفِرْ لَهُمْ أَوْ لَا تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ إِن تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ سَبْعِينَ مَرَّةً فَلَن يَغْفِرَ ٱللَّهُ لَهُمْ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ كَفَرُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلْفَـٰسِقِينَ
9:80
तुम उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो या उनके लिए क्षमा की प्रार्थना न करो। यदि तुम उनके लिए सत्तर बार भी क्षमा की प्रार्थना करोगे, तो भी अल्लाह उन्हें क्षमा नहीं करेगा, यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और अल्लाह अवज्ञाकारियों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:81
فَرِحَ ٱلْمُخَلَّفُونَ بِمَقْعَدِهِمْ خِلَـٰفَ رَسُولِ ٱللَّهِ وَكَرِهُوٓا۟ أَن يُجَـٰهِدُوا۟ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَقَالُوا۟ لَا تَنفِرُوا۟ فِى ٱلْحَرِّ ۗ قُلْ نَارُ جَهَنَّمَ أَشَدُّ حَرًّا ۚ لَّوْ كَانُوا۟ يَفْقَهُونَ
9:81
पीछे रह जानेवाले अल्लाह के रसूल के पीछे अपने बैठ रहने पर प्रसन्न हुए। उन्हें यह नापसन्द हुआ कि अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करें। और उन्होंने कहा, "इस गर्मी में न निकलो।" कह दो, "जहन्नम की आग इससे कहीं अधिक गर्म है," यदि वे समझ पाते (तो ऐसा न कहते) - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:82
فَلْيَضْحَكُوا۟ قَلِيلًا وَلْيَبْكُوا۟ كَثِيرًا جَزَآءًۢ بِمَا كَانُوا۟ يَكْسِبُونَ
9:82
अब चाहिए कि जो कुछ वे कमाते रहे है, उसके बदले में हँसे कम और रोएँ अधिक - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:83
فَإِن رَّجَعَكَ ٱللَّهُ إِلَىٰ طَآئِفَةٍ مِّنْهُمْ فَٱسْتَـْٔذَنُوكَ لِلْخُرُوجِ فَقُل لَّن تَخْرُجُوا۟ مَعِىَ أَبَدًا وَلَن تُقَـٰتِلُوا۟ مَعِىَ عَدُوًّا ۖ إِنَّكُمْ رَضِيتُم بِٱلْقُعُودِ أَوَّلَ مَرَّةٍ فَٱقْعُدُوا۟ مَعَ ٱلْخَـٰلِفِينَ
9:83
अव यदि अल्लाह तुम्हें उनके किसी गिरोह की ओर रुजू कर दे और भविष्य में वे तुमसे साथ निकलने की अनुमति चाहें तो कह देना, "तुम मेरे साथ कभी भी नहीं निकल सकते और न मेरे साथ होकर किसी शत्रु से लड़ सकते हो। तुम पहली बार बैठ रहने पर ही राज़ी हुए, तो अब पीछे रहनेवालों के साथ बैठे रहो।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:84
وَلَا تُصَلِّ عَلَىٰٓ أَحَدٍ مِّنْهُم مَّاتَ أَبَدًا وَلَا تَقُمْ عَلَىٰ قَبْرِهِۦٓ ۖ إِنَّهُمْ كَفَرُوا۟ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَمَاتُوا۟ وَهُمْ فَـٰسِقُونَ
9:84
औऱ उनमें से जिस किसी व्यक्ति की मृत्यु हो उसकी जनाज़े की नमाज़ कभी न पढ़ना और न कभी उसकी क़ब्र पर खड़े होना। उन्होंने तो अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और मरे इस दशा में कि अवज्ञाकारी थे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:85
وَلَا تُعْجِبْكَ أَمْوَٰلُهُمْ وَأَوْلَـٰدُهُمْ ۚ إِنَّمَا يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُعَذِّبَهُم بِهَا فِى ٱلدُّنْيَا وَتَزْهَقَ أَنفُسُهُمْ وَهُمْ كَـٰفِرُونَ
9:85
और उनके माल और उनकी औलाद तुम्हें मोहित न करें। अल्लाह तो बस यह चाहता है कि उनके द्वारा उन्हें संसार में यातना दे और उनके प्राण इस दशा में निकलें कि वे काफ़िर हों - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:86
وَإِذَآ أُنزِلَتْ سُورَةٌ أَنْ ءَامِنُوا۟ بِٱللَّهِ وَجَـٰهِدُوا۟ مَعَ رَسُولِهِ ٱسْتَـْٔذَنَكَ أُو۟لُوا۟ ٱلطَّوْلِ مِنْهُمْ وَقَالُوا۟ ذَرْنَا نَكُن مَّعَ ٱلْقَـٰعِدِينَ
9:86
और जब कोई सूरा उतरती है कि "अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल के साथ होकर जिहाद करो।" तो उनके सामर्थ्यवान लोग तुमसे छुट्टी माँगने लगते है और कहते है कि "हमें छोड़ दो कि हम बैठनेवालों के साथ रह जाएँ।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:87
رَضُوا۟ بِأَن يَكُونُوا۟ مَعَ ٱلْخَوَالِفِ وَطُبِعَ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَفْقَهُونَ
9:87
वे इसी पर राज़ी हुए कि पीछे रह जानेवाली स्त्रियों के साथ रह जाएँ और उनके दिलों पर तो मुहर लग गई है, अतः वे समझते नहीं - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:88
لَـٰكِنِ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ مَعَهُۥ جَـٰهَدُوا۟ بِأَمْوَٰلِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ ۚ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ لَهُمُ ٱلْخَيْرَٰتُ ۖ وَأُو۟لَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلْمُفْلِحُونَ
9:88
किन्तु, रसूल और उसके ईमानवाले साथियों ने अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद किया, और वही लोग है जिनके लिए भलाइयाँ है और वही लोग है जो सफल है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:89
أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُمْ جَنَّـٰتٍ تَجْرِى مِن تَحْتِهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَا ۚ ذَٰلِكَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ
9:89
अल्लाह ने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार कर रखे हैं, जिनके नीचे नहरें बह रह हैं, वे उनमें सदैव रहेंगे। यही बड़ी सफलता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:90
وَجَآءَ ٱلْمُعَذِّرُونَ مِنَ ٱلْأَعْرَابِ لِيُؤْذَنَ لَهُمْ وَقَعَدَ ٱلَّذِينَ كَذَبُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ ۚ سَيُصِيبُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ
9:90
बहाने करनेवाले बद्दूल भी आए कि उन्हें (बैठे रहने की) छुट्टी मिल जाए। और जो अल्लाह और उसके रसूल से झूठ बोले वे भी बैठे रहे। उनमें से जिन्होंने इनकार किया उन्हें शीघ्र ही एक दुखद यातना पहुँचकर रहेगी - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:91
لَّيْسَ عَلَى ٱلضُّعَفَآءِ وَلَا عَلَى ٱلْمَرْضَىٰ وَلَا عَلَى ٱلَّذِينَ لَا يَجِدُونَ مَا يُنفِقُونَ حَرَجٌ إِذَا نَصَحُوا۟ لِلَّهِ وَرَسُولِهِۦ ۚ مَا عَلَى ٱلْمُحْسِنِينَ مِن سَبِيلٍ ۚ وَٱللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
9:91
न तो कमज़ोरों के लिए कोई दोष की बात है और न बीमारों के लिए और न उन लोगों के लिए जिन्हें ख़र्च करने के लिए कुछ प्राप्त नहीं, जबकि वे अल्लाह और उसके रसूल के प्रति निष्ठावान हों। उत्तमकारों पर इलज़ाम की कोई गुंजाइश नहीं है। अल्लाह तो बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:92
وَلَا عَلَى ٱلَّذِينَ إِذَا مَآ أَتَوْكَ لِتَحْمِلَهُمْ قُلْتَ لَآ أَجِدُ مَآ أَحْمِلُكُمْ عَلَيْهِ تَوَلَّوا۟ وَّأَعْيُنُهُمْ تَفِيضُ مِنَ ٱلدَّمْعِ حَزَنًا أَلَّا يَجِدُوا۟ مَا يُنفِقُونَ
9:92
और न उन लोगों पर आक्षेप करने की कोई गुंजाइश है जिनका हाल यह है कि जब वे तुम्हारे पास आते है, कि तुम उनके लिए सवारी का प्रबन्ध कर दो, तुम कहते हो, "मुझे ऐसा कुछ प्राप्त नहीं जिसपर तुम्हें सवार करूँ।" वे इस दशा में लौटते है कि इस ग़म में उनकी आँखे आँसू बहा रही होती है कि वे अपने पास ख़र्च करने को कुछ नहीं पाते - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:93
۞ إِنَّمَا ٱلسَّبِيلُ عَلَى ٱلَّذِينَ يَسْتَـْٔذِنُونَكَ وَهُمْ أَغْنِيَآءُ ۚ رَضُوا۟ بِأَن يَكُونُوا۟ مَعَ ٱلْخَوَالِفِ وَطَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ
9:93
इल्ज़ाम तो बस उनपर है जो धनवान होते हुए तुमसे छुट्टी माँगते है। वे इसपर राज़ी हुए कि पीछे डाले गए लोगों के साथ रह जाएँ। अल्लाह ने तो उनके दिलों पर मुहर लगा दी है, इसलिए वे जानते नहीं - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:94
يَعْتَذِرُونَ إِلَيْكُمْ إِذَا رَجَعْتُمْ إِلَيْهِمْ ۚ قُل لَّا تَعْتَذِرُوا۟ لَن نُّؤْمِنَ لَكُمْ قَدْ نَبَّأَنَا ٱللَّهُ مِنْ أَخْبَارِكُمْ ۚ وَسَيَرَى ٱللَّهُ عَمَلَكُمْ وَرَسُولُهُۥ ثُمَّ تُرَدُّونَ إِلَىٰ عَـٰلِمِ ٱلْغَيْبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
9:94
जब तुम पलटकर उनके पास पहुँचोगे तो वे तुम्हारे सामने बहाने करेंगे। तुम कह देना, "बहाने न बनाओ। हम तु्म्हारी बात कदापि नहीं मानेंगे। हमें अल्लाह ने तुम्हारे वृत्तांत बता दिए है। अभी अल्लाह और उसका रसूल तुम्हारे काम को देखेगा, फिर तुम उसकी ओर लौटोगे, जो छिपे और खुले का ज्ञान रखता है। फिर जो कुछ तुम करते रहे हो वह तुम्हे बता देगा।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:95
سَيَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ لَكُمْ إِذَا ٱنقَلَبْتُمْ إِلَيْهِمْ لِتُعْرِضُوا۟ عَنْهُمْ ۖ فَأَعْرِضُوا۟ عَنْهُمْ ۖ إِنَّهُمْ رِجْسٌ ۖ وَمَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ جَزَآءًۢ بِمَا كَانُوا۟ يَكْسِبُونَ
9:95
जब तुम पलटकर उनके पास जाओगे तो वे तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाएँगे, ताकि तुम उन्हें उनकी हालत पर छोड़ दो। तो तुम उन्हें छोड़ ही दो। निश्चय ही वे गन्दगी है और उनका ठिकाना जहन्नम है। जो कुछ वे कमाते रहे है, यह उसी का बदला है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:96
يَحْلِفُونَ لَكُمْ لِتَرْضَوْا۟ عَنْهُمْ ۖ فَإِن تَرْضَوْا۟ عَنْهُمْ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يَرْضَىٰ عَنِ ٱلْقَوْمِ ٱلْفَـٰسِقِينَ
9:96
वे तुम्हारे सामने क़समें खाएँगे ताकि तुम उनसे राज़ी हो जाओ, किन्तु यदि तुम उनसे राज़ी भी हो गए तो अल्लाह ऐसे लोगो से कदापि राज़ी न होगा, जो अवज्ञाकारी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:97
ٱلْأَعْرَابُ أَشَدُّ كُفْرًا وَنِفَاقًا وَأَجْدَرُ أَلَّا يَعْلَمُوا۟ حُدُودَ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
9:97
वे बद्दूग इनकार और कपटाचार में बहुत-ही बढ़े हुए है। और इसी के ज़्यादा योग्य है कि उनकी सीमाओं से अनभिज्ञ रहें, जिसे अल्लाह ने अपने रसूल पर अवतरित किया है। अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:98
وَمِنَ ٱلْأَعْرَابِ مَن يَتَّخِذُ مَا يُنفِقُ مَغْرَمًا وَيَتَرَبَّصُ بِكُمُ ٱلدَّوَآئِرَ ۚ عَلَيْهِمْ دَآئِرَةُ ٱلسَّوْءِ ۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
9:98
और कुछ बद्दूज ऐसे है कि वे जो कुछ ख़र्च करते है, उसे तावान समझते है और तुम्हारे हक़ मं बुरी गर्दिशों (बुरे दिन) की प्रतीक्षा में हैं, बुरी गर्दिश में तो वही है। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:99
وَمِنَ ٱلْأَعْرَابِ مَن يُؤْمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْـَٔاخِرِ وَيَتَّخِذُ مَا يُنفِقُ قُرُبَـٰتٍ عِندَ ٱللَّهِ وَصَلَوَٰتِ ٱلرَّسُولِ ۚ أَلَآ إِنَّهَا قُرْبَةٌ لَّهُمْ ۚ سَيُدْخِلُهُمُ ٱللَّهُ فِى رَحْمَتِهِۦٓ ۗ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
9:99
और बद्दु,ओं में ऐसे भी लोग है जो अल्लाह और अन्तिम दिन को मानते है और जो कुछ ख़र्च करते है, उसे अल्लाह के यहाँ निकटताओं का और रसूल की दुआओं को प्राप्त करने का साधन बनाते है। हाँ! निस्संदेह वह उनके हक़ में निकटता ही है। अल्लाह उन्हें शीघ्र ही अपनी दयालुता में दाख़िल करेगा। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:100
وَٱلسَّـٰبِقُونَ ٱلْأَوَّلُونَ مِنَ ٱلْمُهَـٰجِرِينَ وَٱلْأَنصَارِ وَٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُم بِإِحْسَـٰنٍ رَّضِىَ ٱللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا۟ عَنْهُ وَأَعَدَّ لَهُمْ جَنَّـٰتٍ تَجْرِى تَحْتَهَا ٱلْأَنْهَـٰرُ خَـٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدًا ۚ ذَٰلِكَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ
9:100
सबसे पहले आगे बढ़नेवाले मुहाजिर और अनसार और जिन्होंने भली प्रकार उनका अनुसरण किया, अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे उससे राज़ी हुए। और उसने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार कर रखे है, जिनके नीचे नहरें बह रही है, वे उनमें सदैव रहेंगे। यही बड़ी सफलता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:101
وَمِمَّنْ حَوْلَكُم مِّنَ ٱلْأَعْرَابِ مُنَـٰفِقُونَ ۖ وَمِنْ أَهْلِ ٱلْمَدِينَةِ ۖ مَرَدُوا۟ عَلَى ٱلنِّفَاقِ لَا تَعْلَمُهُمْ ۖ نَحْنُ نَعْلَمُهُمْ ۚ سَنُعَذِّبُهُم مَّرَّتَيْنِ ثُمَّ يُرَدُّونَ إِلَىٰ عَذَابٍ عَظِيمٍ
9:101
और तुम्हारे आस-पास के बद्दुनओं में और मदीनावालों में कुछ ऐसे कपटाचारी है जो कपट-नीति पर जमें हुए है। उनको तुम नहीं जानते, हम उन्हें भली-भाँति जानते है। शीघ्र ही हम उन्हें दो बार यातना देंगे। फिर वे एक बड़ी यातना की ओर लौटाए जाएँगे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:102
وَءَاخَرُونَ ٱعْتَرَفُوا۟ بِذُنُوبِهِمْ خَلَطُوا۟ عَمَلًا صَـٰلِحًا وَءَاخَرَ سَيِّئًا عَسَى ٱللَّهُ أَن يَتُوبَ عَلَيْهِمْ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ
9:102
और दूसरे कुछ लोग है जिन्होंने अपने गुनाहों का इक़रार किया। उन्होंने मिले-जुले कर्म किए, कुछ अच्छे और कुछ बुरे। आशा है कि अल्लाह की कृपा-स्पष्ट उनपर हो। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:103
خُذْ مِنْ أَمْوَٰلِهِمْ صَدَقَةً تُطَهِّرُهُمْ وَتُزَكِّيهِم بِهَا وَصَلِّ عَلَيْهِمْ ۖ إِنَّ صَلَوٰتَكَ سَكَنٌ لَّهُمْ ۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
9:103
तुम उनके माल में से दान लेकर उन्हें शुद्ध करो और उनके द्वारा उन (की आत्मा) को विकसित करो और उनके लिए दुआ करो। निस्संदेह तुम्हारी दुआ उनके लिए सर्वथा परितोष है। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:104
أَلَمْ يَعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ هُوَ يَقْبَلُ ٱلتَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهِۦ وَيَأْخُذُ ٱلصَّدَقَـٰتِ وَأَنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ
9:104
क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह ही अपने बन्दों की तौबा क़बूल करता है और सदक़े लेता है और यह कि अल्लाह ही तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:105
وَقُلِ ٱعْمَلُوا۟ فَسَيَرَى ٱللَّهُ عَمَلَكُمْ وَرَسُولُهُۥ وَٱلْمُؤْمِنُونَ ۖ وَسَتُرَدُّونَ إِلَىٰ عَـٰلِمِ ٱلْغَيْبِ وَٱلشَّهَـٰدَةِ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
9:105
कह दो, "कर्म किए जाओ। अभी अल्लाह और उसका रसूल और ईमानवाले तुम्हारे कर्म को देखेंगे। फिर तुम उसकी ओर पलटोगे, जो छिपे और खुले को जानता है। फिर जो कुछ तम करते रहे हो, वह सब तुम्हें बता देगा।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:106
وَءَاخَرُونَ مُرْجَوْنَ لِأَمْرِ ٱللَّهِ إِمَّا يُعَذِّبُهُمْ وَإِمَّا يَتُوبُ عَلَيْهِمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
9:106
और कुछ दूसरे लोग भी है जिनका मामला अल्लाह का हुक्म आने तक स्थगित है, चाहे वह उन्हें यातना दे या उनकी तौबा क़बूल करे। अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:107
وَٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُوا۟ مَسْجِدًا ضِرَارًا وَكُفْرًا وَتَفْرِيقًۢا بَيْنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَإِرْصَادًا لِّمَنْ حَارَبَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ مِن قَبْلُ ۚ وَلَيَحْلِفُنَّ إِنْ أَرَدْنَآ إِلَّا ٱلْحُسْنَىٰ ۖ وَٱللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّهُمْ لَكَـٰذِبُونَ
9:107
और कुछ ऐसे लोग भी हैं , जिन्होंने मस्जिद बनाई इसलिए कि नुक़सान पहुँचाएँ और कुफ़्र करें और इसलिए कि ईमानवालों के बीच फूट डाले और उस व्यक्ति के घात लगाने का ठिकाना बनाएँ, जो इससे पहले अल्लाह और उसके रसूल से लड़ चुका है। वे निश्चय ही क़समें खाएँगे कि "हमने तो बस अच्छा ही चाहा था।" किन्तु अल्लाह गवाही देता है कि वे बिलकुल झूठे है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:108
لَا تَقُمْ فِيهِ أَبَدًا ۚ لَّمَسْجِدٌ أُسِّسَ عَلَى ٱلتَّقْوَىٰ مِنْ أَوَّلِ يَوْمٍ أَحَقُّ أَن تَقُومَ فِيهِ ۚ فِيهِ رِجَالٌ يُحِبُّونَ أَن يَتَطَهَّرُوا۟ ۚ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلْمُطَّهِّرِينَ
9:108
तुम कभी भी उसमें खड़े न होना। वह मस्जिद जिसकी आधारशिला पहले दिन ही से ईशपरायणता पर रखी गई है, वह इसकी ज़्यादा हक़दार है कि तुम उसमें खड़े हो। उसमें ऐसे लोग पाए जाते हैं, जो अच्छी तरह स्वच्छ रहना पसन्द करते है, और अल्लाह भी पाक-साफ़ रहनेवालों को पसन्द करता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:109
أَفَمَنْ أَسَّسَ بُنْيَـٰنَهُۥ عَلَىٰ تَقْوَىٰ مِنَ ٱللَّهِ وَرِضْوَٰنٍ خَيْرٌ أَم مَّنْ أَسَّسَ بُنْيَـٰنَهُۥ عَلَىٰ شَفَا جُرُفٍ هَارٍ فَٱنْهَارَ بِهِۦ فِى نَارِ جَهَنَّمَ ۗ وَٱللَّهُ لَا يَهْدِى ٱلْقَوْمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
9:109
फिर क्या वह अच्छा है जिसने अपने भवन की आधारशिला अल्लाह के भय और उसकी ख़ुशी पर रखी है या वह, जिसने अपने भवन की आधारशिला किसी खाई के खोखले कगार पर रखी, जो गिरने को है। फिर वह उसे लेकर जहन्नम की आग में जा गिरा? अल्लाह तो अत्याचारी लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:110
لَا يَزَالُ بُنْيَـٰنُهُمُ ٱلَّذِى بَنَوْا۟ رِيبَةً فِى قُلُوبِهِمْ إِلَّآ أَن تَقَطَّعَ قُلُوبُهُمْ ۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
9:110
उनका यह भवन जो उन्होंने बनाया है, सदैव उनके दिलों में खटक बनकर रहेगा। हाँ, यदि उनके दिल ही टुकड़े-टुकड़े हो जाएँ तो दूसरी बात है। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:111
۞ إِنَّ ٱللَّهَ ٱشْتَرَىٰ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ أَنفُسَهُمْ وَأَمْوَٰلَهُم بِأَنَّ لَهُمُ ٱلْجَنَّةَ ۚ يُقَـٰتِلُونَ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ فَيَقْتُلُونَ وَيُقْتَلُونَ ۖ وَعْدًا عَلَيْهِ حَقًّا فِى ٱلتَّوْرَىٰةِ وَٱلْإِنجِيلِ وَٱلْقُرْءَانِ ۚ وَمَنْ أَوْفَىٰ بِعَهْدِهِۦ مِنَ ٱللَّهِ ۚ فَٱسْتَبْشِرُوا۟ بِبَيْعِكُمُ ٱلَّذِى بَايَعْتُم بِهِۦ ۚ وَذَٰلِكَ هُوَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ
9:111
निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों से उनके प्राण और उनके माल इसके बदले में खरीद लिए है कि उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते है, तो वे मारते भी है और मारे भी जाते है। यह उनके ज़िम्मे तौरात, इनजील और क़ुरआन में (किया गया) एक पक्का वादा है। और अल्लाह से बढ़कर अपने वादे को पूरा करनेवाला हो भी कौन सकता है? अतः अपने उस सौदे पर खु़शियाँ मनाओ, जो सौदा तुमने उससे किया है। और यही सबसे बड़ी सफलता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:112
ٱلتَّـٰٓئِبُونَ ٱلْعَـٰبِدُونَ ٱلْحَـٰمِدُونَ ٱلسَّـٰٓئِحُونَ ٱلرَّٰكِعُونَ ٱلسَّـٰجِدُونَ ٱلْـَٔامِرُونَ بِٱلْمَعْرُوفِ وَٱلنَّاهُونَ عَنِ ٱلْمُنكَرِ وَٱلْحَـٰفِظُونَ لِحُدُودِ ٱللَّهِ ۗ وَبَشِّرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ
9:112
वे ऐसे हैं, जो तौबा करते हैं, बन्दगी करते है, स्तुति करते हैं, (अल्लाह के मार्ग में) भ्रमण करते हैं, (अल्लाह के आगे) झुकते है, सजदा करते है, भलाई का हुक्म देते है और बुराई से रोकते हैं और अल्लाह की निर्धारित सीमाओं की रक्षा करते हैं -और इन ईमानवालों को शुभ-सूचना दे दो - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:113
مَا كَانَ لِلنَّبِىِّ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ أَن يَسْتَغْفِرُوا۟ لِلْمُشْرِكِينَ وَلَوْ كَانُوٓا۟ أُو۟لِى قُرْبَىٰ مِنۢ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُمْ أَصْحَـٰبُ ٱلْجَحِيمِ
9:113
नबी और ईमान लानेवालों के लिए उचित नहीं कि वे बहुदेववादियों के लिए क्षमा की प्रार्थना करें, यद्यपि वे उसके नातेदार ही क्यों न हो, जबकि उनपर यह बात खुल चुकी है कि वे भड़कती आगवाले हैं - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:114
وَمَا كَانَ ٱسْتِغْفَارُ إِبْرَٰهِيمَ لِأَبِيهِ إِلَّا عَن مَّوْعِدَةٍ وَعَدَهَآ إِيَّاهُ فَلَمَّا تَبَيَّنَ لَهُۥٓ أَنَّهُۥ عَدُوٌّ لِّلَّهِ تَبَرَّأَ مِنْهُ ۚ إِنَّ إِبْرَٰهِيمَ لَأَوَّٰهٌ حَلِيمٌ
9:114
इबराहीम ने अपने बाप के लिए जो क्षमा की प्रार्थना की थी, वह तो केवल एक वादे के कारण की थी, जो वादा वह उससे कर चुका था। फिर जब उसपर यह बात खुल गई कि वह अल्लाह का शत्रु है तो वह उससे विरक्त हो गया। वास्तव में, इबराहीम बड़ा ही कोमल हृदय, अत्यन्त सहनशील था - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:115
وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُضِلَّ قَوْمًۢا بَعْدَ إِذْ هَدَىٰهُمْ حَتَّىٰ يُبَيِّنَ لَهُم مَّا يَتَّقُونَ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمٌ
9:115
अल्लाह ऐसा नहीं कि लोगों को पथभ्रष्ट ठहराए, जबकि वह उनको राह पर ला चुका हो, जब तक कि उन्हें साफ़-साफ़ वे बातें बता न दे, जिनसे उन्हें बचना है। निस्संदेह अल्लाह हर चीज़ को भली-भाँति जानता है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:116
إِنَّ ٱللَّهَ لَهُۥ مُلْكُ ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۖ يُحْىِۦ وَيُمِيتُ ۚ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِىٍّ وَلَا نَصِيرٍ
9:116
आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है, वही जिलाता है और मारता है। अल्लाह से हटकर न तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:117
لَّقَد تَّابَ ٱللَّهُ عَلَى ٱلنَّبِىِّ وَٱلْمُهَـٰجِرِينَ وَٱلْأَنصَارِ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُ فِى سَاعَةِ ٱلْعُسْرَةِ مِنۢ بَعْدِ مَا كَادَ يَزِيغُ قُلُوبُ فَرِيقٍ مِّنْهُمْ ثُمَّ تَابَ عَلَيْهِمْ ۚ إِنَّهُۥ بِهِمْ رَءُوفٌ رَّحِيمٌ
9:117
अल्लाह नबी पर मेहरबान हो गया और मुहाजिरों और अनसार पर भी, जिन्होंने तंगी की घड़ी में उसका साथ दिया, इसके पश्चात कि उनमें से एक गिरोह के दिल कुटिलता की ओर झुक गए थे। फिर उसने उनपर दया-दृष्टि दर्शाई। निस्संदेह, वह उनके लिए अत्यन्त करुणामय, दयावान है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:118
وَعَلَى ٱلثَّلَـٰثَةِ ٱلَّذِينَ خُلِّفُوا۟ حَتَّىٰٓ إِذَا ضَاقَتْ عَلَيْهِمُ ٱلْأَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ وَضَاقَتْ عَلَيْهِمْ أَنفُسُهُمْ وَظَنُّوٓا۟ أَن لَّا مَلْجَأَ مِنَ ٱللَّهِ إِلَّآ إِلَيْهِ ثُمَّ تَابَ عَلَيْهِمْ لِيَتُوبُوٓا۟ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ
9:118
और उन तीनों पर भी जो पीछे छोड़ दिए गए थे, यहाँ तक कि जब धरती विशाल होते हुए भी उनपर तंग हो गई और उनके प्राण उनपर दुभर हो गए और उन्होंने समझा कि अल्लाह से बचने के लिए कोई शरण नहीं मिल सकती है तो उसी के यहाँ। फिर उसने उनपर कृपा-दृष्टि की ताकि वे पलट आएँ। निस्संदेह अल्लाह ही तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:119
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ ٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ وَكُونُوا۟ مَعَ ٱلصَّـٰدِقِينَ
9:119
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखों और सच्चे लोगों के साथ हो जाओ - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:120
مَا كَانَ لِأَهْلِ ٱلْمَدِينَةِ وَمَنْ حَوْلَهُم مِّنَ ٱلْأَعْرَابِ أَن يَتَخَلَّفُوا۟ عَن رَّسُولِ ٱللَّهِ وَلَا يَرْغَبُوا۟ بِأَنفُسِهِمْ عَن نَّفْسِهِۦ ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ لَا يُصِيبُهُمْ ظَمَأٌ وَلَا نَصَبٌ وَلَا مَخْمَصَةٌ فِى سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَا يَطَـُٔونَ مَوْطِئًا يَغِيظُ ٱلْكُفَّارَ وَلَا يَنَالُونَ مِنْ عَدُوٍّ نَّيْلًا إِلَّا كُتِبَ لَهُم بِهِۦ عَمَلٌ صَـٰلِحٌ ۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجْرَ ٱلْمُحْسِنِينَ
9:120
मदीनावालों और उसके आसपास के बद्दूहओं को ऐसा नहीं चाहिए था कि अल्लाह के रसूल को छोड़कर पीछे रह जाएँ और न यह कि उसकी जान के मुक़ाबले में उन्हें अपनी जान अधिक प्रिय हो, क्योंकि वह अल्लाह के मार्ग में प्यास या थकान या भूख की कोई भी तकलीफ़ उठाएँ या किसी ऐसी जगह क़दम रखें, जिससे काफ़िरों का क्रोध भड़के या जो चरका भी वे शत्रु को लगाएँ, उसपर उनके हक में अनिवार्यतः एक सुकर्म लिख लिया जाता है। निस्संदेह अल्लाह उत्तमकार का कर्मफल अकारथ नहीं जाने देता - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:121
وَلَا يُنفِقُونَ نَفَقَةً صَغِيرَةً وَلَا كَبِيرَةً وَلَا يَقْطَعُونَ وَادِيًا إِلَّا كُتِبَ لَهُمْ لِيَجْزِيَهُمُ ٱللَّهُ أَحْسَنَ مَا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ
9:121
और वे थो़ड़ा या ज़्यादा जो कुछ भी ख़र्च करें या (अल्लाह के मार्ग में) कोई घाटी पार करें, उनके हक़ में अनिवार्यतः लिख लिया जाता है, ताकि अल्लाह उन्हें उनके अच्छे कर्मों का बदला प्रदान करे - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:122
۞ وَمَا كَانَ ٱلْمُؤْمِنُونَ لِيَنفِرُوا۟ كَآفَّةً ۚ فَلَوْلَا نَفَرَ مِن كُلِّ فِرْقَةٍ مِّنْهُمْ طَآئِفَةٌ لِّيَتَفَقَّهُوا۟ فِى ٱلدِّينِ وَلِيُنذِرُوا۟ قَوْمَهُمْ إِذَا رَجَعُوٓا۟ إِلَيْهِمْ لَعَلَّهُمْ يَحْذَرُونَ
9:122
यह तो नहीं कि ईमानवाले सब के सब निकल खड़े हों, फिर ऐसा क्यों नहीं हुआ कि उनके हर गिरोह में से कुछ लोग निकलते, ताकि वे धर्म में समझ प्राप्ति करते और ताकि वे अपने लोगों को सचेत करते, जब वे उनकी ओर लौटते, ताकि वे (बुरे कर्मों से) बचते? - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:123
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ قَـٰتِلُوا۟ ٱلَّذِينَ يَلُونَكُم مِّنَ ٱلْكُفَّارِ وَلْيَجِدُوا۟ فِيكُمْ غِلْظَةً ۚ وَٱعْلَمُوٓا۟ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلْمُتَّقِينَ
9:123
ऐ ईमान लानेवालो! उन इनकार करनेवालों से लड़ो जो तुम्हारे निकट है और चाहिए कि वे तुममें सख़्ती पाएँ, और जान रखो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:124
وَإِذَا مَآ أُنزِلَتْ سُورَةٌ فَمِنْهُم مَّن يَقُولُ أَيُّكُمْ زَادَتْهُ هَـٰذِهِۦٓ إِيمَـٰنًا ۚ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ فَزَادَتْهُمْ إِيمَـٰنًا وَهُمْ يَسْتَبْشِرُونَ
9:124
जब भी कोई सूरा अवतरित की गई, तो उनमें से कुछ लोग कहते है, "इसने तुममें से किसके ईमान को बढ़ाया?" हाँ, जो लोग ईमान लाए है इसने उनके ईमान को बढ़ाया है। और वे आनन्द मना रहे है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:125
وَأَمَّا ٱلَّذِينَ فِى قُلُوبِهِم مَّرَضٌ فَزَادَتْهُمْ رِجْسًا إِلَىٰ رِجْسِهِمْ وَمَاتُوا۟ وَهُمْ كَـٰفِرُونَ
9:125
रहे वे लोग जिनके दिलों में रोग है, उनकी गन्दगी में अभिवृद्धि करते हुए उसने उन्हें उनकी अपनी गन्दगी में और आगे बढ़ा दिया। और वे मरे तो इनकार की दशा ही में - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:126
أَوَلَا يَرَوْنَ أَنَّهُمْ يُفْتَنُونَ فِى كُلِّ عَامٍ مَّرَّةً أَوْ مَرَّتَيْنِ ثُمَّ لَا يَتُوبُونَ وَلَا هُمْ يَذَّكَّرُونَ
9:126
क्या वे देखते नहीं कि प्रत्येक वर्ष वॆ एक या दो बार आज़माईश में डाले जाते है ? फिर भी न तो वे तौबा करते हैं और न चेतते। - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:127
وَإِذَا مَآ أُنزِلَتْ سُورَةٌ نَّظَرَ بَعْضُهُمْ إِلَىٰ بَعْضٍ هَلْ يَرَىٰكُم مِّنْ أَحَدٍ ثُمَّ ٱنصَرَفُوا۟ ۚ صَرَفَ ٱللَّهُ قُلُوبَهُم بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا يَفْقَهُونَ
9:127
और जब कोई सूरा अवतरित होती है, तो वे परस्पर एक-दूसरे को देखने लगते है कि "तुम्हें कोई देख तो नहीं रहा है।" फिर पलट जाते है। अल्लाह ने उनके दिल फेर दिए, क्योंकि वे ऐसे लोग है जो समझते नहीं है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:128
لَقَدْ جَآءَكُمْ رَسُولٌ مِّنْ أَنفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُم بِٱلْمُؤْمِنِينَ رَءُوفٌ رَّحِيمٌ
9:128
तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक रसूल आ गया है। तुम्हारा मुश्किल में पड़ना उसके लिए असह्य है। वह तुम्हारे लिए लालयित है। वह मोमिनों के प्रति अत्यन्त करुणामय, दयावान है - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)
9:129
فَإِن تَوَلَّوْا۟ فَقُلْ حَسْبِىَ ٱللَّهُ لَآ إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۖ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَهُوَ رَبُّ ٱلْعَرْشِ ٱلْعَظِيمِ
9:129
अब यदि वे मुँह मोड़े तो कह दो, "मेरे लिए अल्लाह काफ़ी है, उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं! उसी पर मैंने भऱोसा किया और वही बड़े सिंहासन का प्रभु है।" - Farooq Khan and Ahmed (Hindi)