Selected

Original Text
Suhel Khan and Saifur Nadwi

Available Translations

65 Aţ-Ţalāq ٱلطَّلَاق

< Previous   12 Āyah   The Divorce      Next >  

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ
In the name of Allah, Most Gracious, Most Merciful.

65:6 أَسْكِنُوهُنَّ مِنْ حَيْثُ سَكَنتُم مِّن وُجْدِكُمْ وَلَا تُضَآرُّوهُنَّ لِتُضَيِّقُوا۟ عَلَيْهِنَّ ۚ وَإِن كُنَّ أُو۟لَـٰتِ حَمْلٍ فَأَنفِقُوا۟ عَلَيْهِنَّ حَتَّىٰ يَضَعْنَ حَمْلَهُنَّ ۚ فَإِنْ أَرْضَعْنَ لَكُمْ فَـَٔاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ ۖ وَأْتَمِرُوا۟ بَيْنَكُم بِمَعْرُوفٍ ۖ وَإِن تَعَاسَرْتُمْ فَسَتُرْضِعُ لَهُۥٓ أُخْرَىٰ
65:6 मुतलक़ा औरतों को (इद्दे तक) अपने मक़दूर मुताबिक दे रखो जहाँ तुम ख़ुद रहते हो और उनको तंग करने के लिए उनको तकलीफ न पहुँचाओ और अगर वह हामेला हो तो बच्चा जनने तक उनका खर्च देते रहो फिर (जनने के बाद) अगर वह बच्चे को तुम्हारी ख़ातिर दूध पिलाए तो उन्हें उनकी (मुनासिब) उजरत दे दो और बाहम सलाहियत से दस्तूर के मुताबिक बात चीत करो और अगर तुम बाहम कश म कश करो तो बच्चे को उसके (बाप की) ख़ातिर से कोई और औरत दूध पिला देगी - Suhel Khan and Saifur Nadwi (Hindi)